Saturday, August 11, 2012

आर्थिक और राजनैतिक हैसियत से तय होती है भाषा की ताकत






                                   आधुनिक दौर में बोली के रूप में तो हिंदी समृद्ध हो रही है, लेकिन ज्ञान की भाषा के रूप में हिंदी की स्थिति चिंताजनक है। हिंदी भाषा का इतिहास काफी प्राचीन है। हिंदी पारसी भाषा का शब्द है। जिसका अर्थ होता है हिंदी का या हिंद से संबंधित। इस शब्द की उत्पत्ति सिंधु.सिंध से हुई है। इरानी भाषा में स को ह बोला जाता था। वर्तमान में हम जिस हिंदी भाषा को जानते हैं, वह आधुनिक आर्य भाषाओं में एक है। आर्य भाषा का प्राचीनतम् रूप वैदिक संस्कृत है। संस्कृत उस समय की बोल.चाल की भाषा थी। करीब ५०० ईसा पूर्व के बाद तक आधारभूत बोलचाल की भाषा संस्कृत काफी बदल गई। जिसे पालि कहा गया। कालांतर में पालि भाषा भी अपभ्रंशित होकर पाकृत भाषा बनी। समय के साथ.साथ भाषा अपभ्रंशित होती रही। १००० ई के आसपास अपभ्रंश से विभिन्न क्षेत्रीय रूपों से आधुनिक आर्य भाषा का जन्म हुआ। अपभ्रंश से ही हिंदी का भी जन्म हुआ। देश की आजादी के बाद १४ सितंबर १९४९ में हिंदी भाषा को देश की संविधान सभा ने राष्ट्रीय ऑफिशियल लैंग्वेज के रूप में घोषित किया गया है। इसके बाद से ही इस दिन को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
                                 आमतौर पर यह माना जाता है कि हिंदी भाषा का सबसे अधिक संघर्ष बोलियों और स्थानीय भाषाओं से है। इस भाषायी संघर्ष में राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को सबसे ज्यादा खतरा है। यह विचार उचित प्रतीत नहीं होता है। व्यवहारिक रूप में देखा जाए तो हिंदी का बोलियों और क्षेत्रीय भाषाओं के साथ टकराव का छद्म वातावरण तैयार किया जा रहा है। वास्तविकता यह है कि बोलियों और स्थानीय भाषाओं से ही हिंदी बोलचाल की भाषा के रूप में समृद्ध हो रही है। चाहे वह मराठी,भोजपुरी, मैथिल, छत्तीसगढ़ी आदि स्थानीय भाषाएं हों या अन्य बोलियां। इनसे हिंदी ने काफी कुछ ग्रहण किया है। हालांकि इसके बावजूद हिन्दी ज्ञान की भाषा के रूप में काफी पीछे हो चली है। जो हिंदी प्रेमियों के लिए चिंता की बात है। आधुनिक युग इलेक्ट्रॉनिक व संचार साधनों एवं उन्नत तकनीक का है। इन तकनीको को विकसित करने में अंग्रेजी भाषा की ही भूमिका रही है। हिंदी भाषा कभी भी तकनीकी भाषा नहीं बन पाई। जिसकी पृष्ठभूमि में राजनीतिक और आर्थिक हैसियत ही रही।
                                किसी देश, राज्य या स्थान की राजनैतिक और आर्थिक हैसियत से ही भाषा की ताकत तय होती है। एक समय था जब विश्व पटल पर सोवियत रूस एक बड़ी ताकत था। आर्थिक रूप से भी और राजनैतिक रूप से भी। उस वक्त पूरे विश्व में रूसी भाषा सीखने के लिए लोग लालायित रहते थे और उनकी बड़ी संख्या थी। सोवियत रूस के विघटन के बाद अमेरीका, ब्रिटेन और चीन आर्थिक ताकत बने और उनकी राजनैतिक हैसियत भी बढ़ी। उसके बाद से अमेरीकन अंग्रेजी और चीनी भाषा का फैलाव जबरदस्त तरीके से हुआ। इन देशों की भाषाएं वहां की जनभाषा के साथ.साथ ज्ञान की भाषा के रूप में भी समृद्ध हुई। इधर, आधुनिक समय में भारत विश्व के लिए बड़ा बाजार बन कर उभर रहा है। जिसका असर यह है कि हिंदी सीखने के प्रति विदेशियों का रुझान भी बढ़ा है। हालांकि इससे हिंदी केवल एक बोली के तौर पर ही समृद्ध होगी। राजनैतिक और आर्थिक हैसियत के रूप में अभी भारत विश्व के सर्वोच्च शिखर पर नहीं है।
                               किसी भी भाषा में समृद्ध शब्दकोश होना ही भाषा के विकास के लिए पर्याप्त नहीं है। जिस तेजी से अंग्रेजी का विकास हुआ है और पूरे विश्व की संपर्क भाषा बनी हुई है, उसका आशय यह बिल्कुल नहीं है कि अंग्रेजी शब्दकोश में अधिक और समृद्ध शब्द हैं। हिंदी के अलावा जर्मन, फ्रेंच आदि विदेशी भाषाओं के शब्दकोश समृद्ध हैं, लेकिन वे पूरी तरह संपर्क भाषा नहीं बन सके हैं। भाषा के विकास और विस्तार के लिए जिस देश में वह भाषा बोली जाती है,उसका बाजार बड़ा और आर्थिक व राजनैतिक हैसियत विश्व को प्रभावित करने वाली होनी चाहिए।
                                हिंदी को लेकर वर्तमान पीढ़ी की मानसिकता में बदलाव लाना होगा। आज की पढ़ी.लिखी पीढ़ी अपने घरों में क्षेत्रीय बोली या हिंदी में भले ही बात करती हो, लेकिन जब वह घर से बाहर निऽलती है तो उनकी जुबान में अंग्रेजी रहती है। देश में हिंदी के विकास में हिंदी फिल्मों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। हिंदी फिल्मों के कारण कई गैर हिंदी भाषियों ने हिंदी सीखी, लेकिन आधुनिक दौर में युवा पीढ़ी टीवी व अन्य संचार साधनों में अपने नायक-.नायिकाओं को फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता देखकर उनके अनुसार खुद को ढालने की भी कोशिश करती है। अंग्रेजी को अच्छा और हिंदी को गंवारों की भाषा समझने की मानसिकता जब तक नहीं बदलेगी, देश में हिंदी को समृद्ध करना मुष्किल होगा।

विक्रांत पाठक [ लेखक ]

Tuesday, May 15, 2012

आदिवासी एक्ट बना पत्रकारों के लिए सिरदर्द

जशपुर - यु तो आदिवासी एक्ट विशेष पिछडी जाति व जनजाती पर होने वाले अत्याचार को रोकने के लिए बनाया गया है ..पर जशपुर जिले में पुलिस का अत्याचार कहे  या पत्रकारो की नामर्दानगी इस कदर बढ़ गई है की यहाँ पत्रकारों पर सरे आम आदिवासी एक्ट के  साथ पुलिस एफ आई आर दर्ज कर गिरफ्तारी की कार्यवाही को अंजाम देने की कोशिश कर रही है ....जी हां मामला है ई  टीवी के संवाददाता  पवन तिवारी का जिसने बीते दिनों कुनकुरी में अपने मकान मालिक से लड़ाई कर ली थी जिसकी शिकायत मकान मालिक ने कुनकुरी थाने में की थी ......लगभग छ माह बीतने के बाद कोई कार्यवाही नही की गई ....क्युकी बात एक पत्रकार की थी ......पर हमारे संवाददाता जब तक पुलिस की चापलूसी करते हैं तब सब ठीक होता है पर जहा बात आती है स्वाभिमान की तो कोई भी हो रगड़ देते है .....
         ऐसा ही कुछ हुआ पवन तिवारी जी के साथ चालित थाना के कार्यक्रम में बच्चो से झाड़ू लगवाते हुए थानेदार का विजुअल बना लिए और खेलने लगे समाचार से ..बस क्या था इधर समाचार चली उधर आदिवासी और हरिजन एक्ट की धाराएं पहले की शिकायत पर लगनी शुरू हो गयी ...मारपीट व गाली गलौज को तो कैसे भी झेल जाते पर ...बात आदिवासियों के हित की है पर हमारा तो अहित हो ही रहा था ...क्युकी सहारे थानेदार ने अपराध पंजीबद्ध कर एस डी ओ पी को सौप दिया था जिसमे जांच कर एस डी ओ पी  वर्षा मेहर ने एस पी को आदिवासी एक्ट की धाराओ की पुष्टि की खबर भेज दी थी ......
          इधर आग में घी डालने का काम सहारा एम् पी सी जी के जशपुर संवाददाता राजेश पाण्डेय  के साथ साथ बाक़ी प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक मीडिया वालो ने कर दिया हुआ यु की जशपुर जिले के पत्थाल्गाओं थाने में नाबालिग बच्चो को हथकड़ियो में जकड के शारिरीक प्रताड़ना का मामला आ गया बस क्या था खबर झमाझम चलने लगी इधर एस पी साहब को मजबूरन उस थानेदार को लाईन अटैच करना पडा ...शायद एस पी साहब को नही पता था की उस पत्थाल्गाओं थाणे के टी आई नरेंद्रा शर्मा की पहुच पोलिस हेड क्वार्टर व मंत्रालय तक है ..अटैच तो कर दिया अब एस पी साहब को भी ऊपर तक जवाब देना पडा ....कही ना कही मीड़िया वालो की मर्दानगी का असर दिख रहा था पर अन्दर ही अन्दर पवन तिवारी जी के खिलाफ भी रणनीती तैयार की जा रही थी ....खैर अपराध तो दर्ज हो ही चुका है वो भी आदिवासी एक्ट के तहत ! जमानत भी नही मिलेगी ...?
       सभी पत्रकारों  को लेकर एक टीम एस पी साहब से मिलने भी गयी पर क्या मिला ....आश्वाशन का झुनझुना .....अब तो गिरफ्तारी बची है बस .....दिख जायेगी पत्रकारों की मर्दानगी ....
इतने में भी हम तो पत्रकार जो ठहरे चुप नही बैठने वाले थे सभी ने मिलकर कुछ निष्कर्ष निकाला तो पता चला की पत्रकार की गिरफ्तारी और कोर्ट  में चालान प्रस्तुत करने के लिए  आई जी के परमिसन की जरुरत होती है ....वो सब तो इन्होने नही किया था .....अब फिर से एक बार एस पी साहब के पास जाना होगा ...सबकी सलाह के बाद ही कोई निर्णय लिया जा सकेगा ....
        एक तो जशपुर पूर्णतः आदिवासी बाहुल इलाका है यहाँ काम करना थोड़ा कठीन है क्युकी छोटी जगह में यहाँ की बात वहा होते देर नही लगती उस पर किसी को कुछ कह दिया तो आदिवासी हरिजन एक्ट .....आम बात है पर क्या इसका दुरूपयोग सही है ..यहाँ के नेता और दिग्गज भी इसी के सहारे दबाव बनाते है पर हमको तो हर हाल में पत्रकारिता करनी ही है ......

Thursday, May 10, 2012

बेडियो में बचपन

बेरहम पुलिस 


पैरो में बेड़ियाँ डालकर बैठाए गए बच्चे 
 जशपुर - देश भक्ति और जन सेवा और सुधार के लिए सदैव  तत्पर रहने का दावा करने वाली पुलिस का सबसे बेरहम चेहरा सामने आया है ,बेरहमी इस कदर कि छः सात साल के बच्चों के पैरों में बेड़ियाँ लगा दी गईं और बेड़ियों में जकड़कर न उन्हें कैद रखा गया है बल्कि थाने के थानेदार के उन बच्चों कि बेरहमी से पिटाई भी कि जा रही है ..मासूमो पर बर्दी का रूतवा झाड रहे थानेदार का कहना है कि मुख्य धारा धारा में जोड़ने लिए ऐसा करना जरुरी है .मामला जशपुर जिले के पत्थल गाँव थाने का है ..........


बच्चे को गंदी गाली देकर बाल खीचते हुए थानेदार नरेंद्र शर्मा जी
                                               नीले रंग के पोशाक में इस मासूम का बेरहमी से बाल खींचने वाले इन साहब को गौर से देखिये ये साहब पत्थलगांव थाने के थानेदार हैं जिन्हें बर्दी का रितावा झाड़ने का शायद आज अच्छा मौका मिला है ,अभी तो आप बाल कि खिंचाई भर देख रहे हैं अभी तो कुछ और भी देखना बाकी है ,देखिये इन तीनो मासूमो को कैसे बेंडीयों में जकड कर रखा गया है एक बंदी और आदतन अपराधी कि तरह इन्हें इस थाने में दो दिनों से यूँ ही रखा गया है इस बात कि जानकारी जब हमें मिली अकुर हम जब इस मामले कि तश्दिक करने हाने गएर तो ये तीनो मासूम बच्चे हमें इसी अवस्था में मिले ,हमारे कैमरे में जब इन मासूमो कि तस्वीर कैद होने लगी और जब हमारे कैमरे कि हरकतों पर थाने के पोलिउस वाले कि नजर पड़ी तो उसने इन बच्चों के पैरों में लगी बेंडीयान  शुरू कर दी ,आप देख   सकते हैं पूरी तस्वीर ,साफ साफ देखा जा सकता है कि पुलिस का ये आदमी किस तरह इनके पैरों से बेंडी यान खोल रहा है ,बच्चों से पुलिस का खफ हटाने के लिए एक और सरकार बाल मित्र जैसी योजनायें चलाती हैं तो दूसरी और मासूमो पर इस कदर पुलिस का कहर टूटना पुलिस के तमाम दावों और कोसिसों कि कलाई खोलती है ,बहरहाल इस पुरे मामले में जब हमने पत्थलगांव थाने के थानेदार नरेन्द्र शर्मा से बात कि तो उनका कहना था कि ये बच्चे चोर प्रवृति के हैं ,चोरी करना ही इनका काम है और इन्हें मुख्य धारा में वापस लाने के लिए कड़ाई जरूरी है ......
मीडिया की दखल के बाद बेडियो से मुक्त बच्चे 
                                                          
उन्हें थाना क्यों लाया गया ,इनका दोष क्या था ये जानने लिए जब हमने इन बच्चों से बात कि तो बच्चों ने हांलाकि ये कबूल किया कि वे पहले चोरी का काम करते थे लेकिन आज उन्हें बेकसूर यहाँ लाया गया है ,उन्होंने हमें ये भी बताया की वे लावारिस हैं किसी के पिता नहीं है ओ किसी के पिता ने दूसरी शादी करके घर बसा लिया तो कोई खाना खाने के लिए चोरी किया करते हैं ....
                    
बेडियो में बचपन 
                                                         हों सकता है की इन मासूमो के अक्न्दर अपराध का बीज पनप रहा हों और ये अपराध की दुनिया में कदम भी रक्ल्ह चुके हों लेकिन आखी इन्हें मुख्य धारा से जोड़ने की जिम्मेदारी किसकी है और क्या इन्हें सुधारने का सबसे आखिरी तरिका यही है जिस तरीके को पत्थल गाँव पोलिस अपना रही है ,सवाल तो ऐसे ऐसे कई हैं जिसका जवाब पोलिस को देना होगा ..................................



Wednesday, March 21, 2012

विवादों के घेरे में नगर पंचायत बगीचा



  • विवादों के घेरे में नगर सौदर्यीकरण अभियान
  • नगर पंचायत की औपचारिक सहमती के बिना हो रहे हैं कार्य
  • व्यवस्थापन से वंचित प्रभावितों में नाराजगी


बगीचा - अतिक्रमण विरोधी मुहिम के दौरान तमाम विवादों में घिरने के बाद बगीचा प्रषासन इन दिनों नगर सौंदर्यीकरण के कार्य को लेकर एक बार पुनः विवादों में घिरता नजर आ रहा है। अतिक्रमण से मुक्त कराए गए शासकीय जमीनों पर कराए जा रहे सौंदर्यीकरण के इन कार्यो में उठ रहीं विवादों का प्रमुख करण इन कार्यो के लिए नगर पंचायत की सहमति सहित अन्य औपचारिकताओं की प्रषासन द्वारा अनदेखी किया जाना है।
विगत दो-तीन माह के दौरान अतिक्रमण विरोधी मुहिम चला कर स्थानीय प्रषासन ने नगर के नजलू और घास जमीन को मुक्त कराया था। मुक्त कराए गए जमीन को पुनः अतिक्रमण से बचाने के लिए बगीचा के प्रषासनिक अधिकारियों ने सौंदर्यीकरण का कार्य प्रारंभ किया है। इस कार्य के तहत नगर के प्रमुख चौक-चौराहों सहित शासकीय कार्यालयों के सामने स्थानीय संस्कृति को दर्षाती विभिन्न मूर्तियां,गॉर्डन और फौव्वारा लगाने का कार्य इन दिनों जोरो पर है। नगर सौंदर्यीकरण के लिए प्रारंभ किए गए इन कार्यो के लिए अधिकारियों ने शासकीय औपचारिकताओं को भी पूरा करना उचित नहीं समझा।
अंजान नगर पंचायत -
नगर में जोर शोर से चल रहे नगर सौंदर्यीकरण कार्य से नगर पंचायत पूरी तरह से अंजान है। इस संबंध में नगर पंचायत अध्यक्ष प्रभात सिडाम से चर्चा करने पर उन्होनें बताया कि नगर सौंदर्यीकरण से संबंधित किसी कार्य का प्रस्ताव नगर पंचायत द्वारा पारित नहीं किया गया है और ना ही औपचारिक स्वीकृति प्रदान की गई है। उक्त कार्य पूरी तरह से स्थानीय प्रषासन द्वारा कराया है। इन कार्यो के लिए राषि कहां से आ रही है,यह संबंधित अधिकारी ही बता सकते हैं। इन निर्माण कार्यो के लिए व्यय की गई राषि स्वयं मे ंएक जांच का विषय हो सकती है।
नगरवासियों ने खोला मोर्चा -
अतिक्रमण विरोधी मुहिम के दौरान कलेक्टर अंकीत आनंद ने जिलेवासियों और जनप्रतिनीधियों को प्रषासनिक कार्यवाही से किसी को भी बेरोजगार ना होने देने का आष्वासन दिया था। जिले के मुखिया का यह आष्वासन भी बगीचा में लागू होती नहीं दिखाई दे रही है। अतिक्रमण विरोधी मुहिम के दौरान प्रषासन ने बस स्टेण्ड सहित नगर के अन्य स्थानों से लगभ सौ ठेले,गुमटियां,होटल आदि को हटाया था। इस दौरान अधिकारियों ने प्रभावितों को व्यवस्थापन का अष्वासन दिया था। लेकिन कलेक्टर के आष्वासन और शासन की नीति के उल्ट स्थानीय प्रषासन ने प्रभावितों को दुकान मुहैया कराने के बजाय सौंदर्यीकरण कराना ज्यादा उचित समझा। प्रषासन की इस अदूरदर्षीपूर्ण कार्यवाही से प्रभावितों में खासी नाराजगी देखी जा रही है। प्रभावितों ने प्रषासन के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए वायदे के मुताबिक प्रषासन द्वारा  व्यावस्थापन ना किए जाने पर आमरण अनषन सहित उग्र आंदोलन की चेतवानी दी है।
प्रषासन की प्राथमिकता सवालों के घेरे में -
पेय जल और स्ट्रीट लाईट जैसी बुनियादी सुविधा से महरूम बगीचा में प्रषासन द्वारा नगर के सौंदर्याीकरण में पूरी ताकत झोंक दिए जाने से,अधिकारियों की प्राथमिकताओं को लेकर सवाल उठने लगे हैं। गर्मी के दस्तक के साथ ही नगर के जल स्त्रोत दम तोड़ने लगे हैं। पेय जल और निस्तारी जल के लिए हाहाकार मचने लगा है। नगर की गलियां अभी भी अंधेरे में डूबी पड़ी है। इन अति आवष्यक कार्यो की उपेक्षा कर नगर सौंदर्यीकरण को प्राथमिकता दिए जाने से स्थानीय प्रषासन के कार्यो पर विवादों का साया मंडराने लगा है।
नगर पंचायत पर बढ़ेगा आर्थिक बोझ -
सौदर्यीकरण के नाम पर नगर में अनावष्यक रूप से स्ट्रीट लाईट और फौव्वारें अधिकारियों द्वारा लगवाया गया है। इन स्ट्रीट लाईट और फौव्वारों को भारी भरकम बिजली बिल आर्थिक तंगी की मार झेल रहे नगर पंचायत पर भारी पड़ने वाला है। जानकारी के मुताबिक हाल ही में नगर पंचायत ने किसी तरह लगभग 4 लाख रूप्ये विद्युत विभाग को अदा कर नगर को अंधेरे में डूबने से बचाया है। ऐसे में आने वाले दिनों में यह कथित नगर सौंदर्यीकरण नगरवासियों को कितना भारी पड़ने वाला है,इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है।

नहीं बना शॉपिंग कॉम्प्लेक्स -
जनपद पंचायत कार्यालय के सामने अतिक्रमण से मुक्त कराई गई जमीन पर नगर पंचायत ने शॉपिंग काम्प्लेक्स निर्माण कराने का प्रस्ताव लगभग छः माह पूर्व पारित किया था। लेकिन सौंदर्याीकरण की जल्दबाजी में प्रषासन ने नगर पंचायत के प्रस्ताव को दरकिनार करते हुए सौंदर्यीकरण का कार्य करा दिया है। प्रषासन के इस कदम से एक ओर नगर के बेरोजगार परेषान हैं,वहीं नगर पंचायत के अस्तित्व और उसके औचित्य पर भी प्रष्न चिन्ह लग रहा है।

Thursday, March 1, 2012

खतरनाक खिलौना

आपने कई वफादार देखे होंगे जो इन्सान से दोस्ती भी करते है और जरूरत पड़ने पर उन्हें सुरक्षित भी रखते हैं। यहां हम आपको दिखाने जा रहे हैं सांप से एक परिवार की दोस्ती। जी हां यह सांप इस परिवार का दोस्त भी है और समय पड़ने पर उनकी रक्षा भी करता है। लोग भले ही उससे डरते हों पर उस परिवार के लोग उसके साथ खाने पीने से लेकर खेलने व पढ़ने का काम भी करते हैं। जशपुर जिले में आज भी लोग प्राचीन मान्यता के अनुसार जानवरों को पालते है और उनसे एक घर के सदस्य की तरह व्यवहार करते हैं,उनसे दोस्ती भी करते हैं। जिससे जरूरत पड़ने पर वह उस परिवार की रक्षा व सहायता भी करता है। यहां कई ऐसे जाति हैं जो सांपों को पालते है और अपने घर में रखते हैं। इनकी मान्यता होती है कि सांप उनकी रक्षा करता है और सहायता भी। इसलिए वे सांप को पालते हैं। छ.ग. और उड़ीसा सीमा पर बसे घुमरा गांव में जहां असवर राम अपने परिवार के साथ पूर्वजों के समय से ही सांप को पालकर अपने घर का सदस्य बनाया हुआ है। यह सांप इनके घर के अन्य सदस्यों के साथ ही रहता है जो साथ में खाना भी खाता है,बच्चों के साथ खेलता और पढ़ता भी है। इसके बावजूद यह सांप इनको कोई नुकसान नहीं पंहुचाता है बल्कि जरूरत पड़ने पर इनकी रक्षा भी करता है। वैसे तो यह इलाका नागलोक से के नाम से जाना जाता है जहां लोग सर्पविद्या में भी माहिर होते है जिसके सहारे सांपों को पकड़ना,विष उतारना,जैसे काम इनके बांए हाथ का खेल होता है परंतु यह परिवार पुराने समय से ही सांप का शौकीन है और इनको भी सर्पविद्या में महारत हासिल है। जब भी किसी सांप को ये पकड़ते हैं तो उसकी विष ग्रंथी को निकाल देते हैं जिससे सांप दूध व अन्य खाद्यान्न ग्रहण करने लगता हैं। इसके जानकार बताते हैं कि सर्प के विषग्रंथी का सीधा संबंध उसकी आयु से होता है जिसे निकाल लेने के बाद सांप की आयु कम हो जाती है।

Thursday, January 26, 2012

देश तेरे लिए




इतिहास के पन्ने उलटते वक्त,
    कभी- कभी सोचता हूँ कि कैसे-कैसे,
          उन लूटेरों ने, अँग्रेजों ने
              लूटा होगा , छलनी किया होगा
                  हमारे देश की जनता को,
                     हमारी संस्कृति को , सभ्यता को ,
                       हमारी धरोहर को ।
                         मन में अजीब से चित्र घुमने लगते हैं ।
                               मन-ही-मन उन्हें गालियाँ देता हूँ
                                   और फिर सो जाता हूँ,
                                     चैन की नींद ,
                                      कि चलो अब तो हम आजाद हैं ।
                                               -----------------------------------------
                                            और अगली ही सुबह,
                                        अखबार में देखता हूँ -
                                     आतंक के साये में डर-डर के जीते लोग,
                                   भ्रष्ट नेताओं की चाल में बलि चढती भोली-भाली जनता,
                              आधे पेट खाकर जीवन-यापन करता परिवार,
                           अपनी ही हालत पे रोते सरकारी दफ़्तर, 
                        अस्पताल और ना जाने कितने समस्याओं से जूझता अपना राष्ट्र ।
                    मन में फिर सवाल उठता है ,
                क्या हम सचमुच आजाद हैं ?
            फिर मुँह से भद्दी गालियाँ निकलती हैं ,
        उन भ्रष्ट नेताओं के लिये , आतंकवादियों के लिये ।
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पर क्यों , किसलिए ?
मैं क्यों उनसे इतनी घृणा करता हूँ ?
उनने जो कुछ भी किया ,
अपने स्वार्थवश अथवा अज्ञानवश |
पर मैनें क्या किया
अपने देश के लिए ?
कहीं मैं भी तो जिम्मेवार नहीं ,
इन सब के लिए ?
फिर से वही प्रश्न
और मैं उलझ पड़ता हूँ, अपने-आप से ।
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मुझे कोई अधिकार नहीं ,
किसी से घृणा करने का।
मुझे घृणा है ,
तो अपने आप से , अपनी मूकदर्शिता से , 
अपनी अकर्मण्यता से
अपनी उस खुद की बनाई हुई मजबूरी से ,
जो मुझे कुछ करने नहीं देता,
अपने स्व से उठकर ।
उस मोह से , उस बंधन से ,
जो मुझे सीमित करता है ,
अपने-आप तक , अपने परिवार तक ।
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लेकिन फिर, अगर ये ही मेरा पूरा सच है ,
तो मन में इतनी उथल-पुथल क्यों ?
इतनी घुटन क्यों?ये उबाल क्यों ?
संभवतः ये संकेत हैं ,
कि मेरा भावनाएँ अभी मरी नहीं ,
सुसुप्त भले ही हैं ।
मानो जागने के लिए इंतजार हो,
किसी क्षण-विशेष का ।
जब ये सीमाएँ टूटेंगी ,
जब कोई मोह नहीं , 
कोई बंधन नहीं बस एक जूनून ,
कि मिटा दूँगा हर उस छोटी - बड़ी शक्ति को,
जो छीनती है हमसे  हमारी आजादी , हमारा चैन ।
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इसलिए ,
हे देश के भ्रष्ट-स्वार्थी नेताओं ,
हमारी अमन-शांति छीनने वाले आतंकवादियों ,
और हमारी तरक्की से जलने वाले राष्ट्रों
चेतो ।
हमारे भीतर की उबाल को
कम मत आँको ।
क्योंकि इनमें इतनी ऊर्जा है ,
कि ये सुनामी बनकर ,
महलों को भी मिट्टी में परिणत कर  सकती है ।

Wednesday, January 25, 2012

क्या यही हमारी अवकात है !

  • क्या यही हमारी अवकात है !
  • क्या जशपुर जिला वाकई घटिया है ?
  • कलेक्टर ने किस आधार पर बोला घटिया  ?
  • वो भी छत्तिश्गढ़ में नहीं पुरे भारत देश में सबसे घटिया जिला ......?        
श्रीमान अंकित आनंद ,कलेक्टर .जशपुर  
जशपुर में छात्रों के बीच महाविद्यालय में चल रहे कार्यक्रम के दौरान कलेक्टर अंकित आनंद ने जशपुर जिले को पूर्व भारत में सबसे घटिया जिला बता दिया .......मामला गंभीर है .....? हो सकता है महोदय का मकसद जिलेवासियो की भावनाओ को ठेस पहुचाना नही होगा .......पर जिलेवासियों के स्वाभिमान को ठेस तो लगी है ........? माना की यहाँ की जनता सीधी साधी है ....भोली भाली है ......जिसका फायदा यहाँ के कथित नेता हमेशा उठाते है ....जायज बात है .....निर्माण कार्यो में कमिसन पे काम होता है जो अधूरा भी होता है और घटिया भी .. वो भी ठीक है .......लोगो में अपने अधिकारों के प्रति  जागरूकता की कमी है ........इसीलिए तो नेता उनके अधिकारों के लिए खड़े होते है .........जो बहुतायत राजनीती से प्रेरित होता है ........इसी का परिणाम है की जनता स्वयं से जागृत नहीं हो पाती .....फिर भी अब तो हालात बदल चुके है .....अगर इतने में ही कलेक्टर महोदय जिले को घटिया बता रहे है तो आज से ५ वर्ष पहले ...की राजनीती होती तो यहाँ के नेता तो अब तक अधिकारियों की परेड ले लेते ...तब ...अधिकारियो को इतनी आजादी नहीं थी ....जनता की तो बात ही दूर और अब आलम यह है की आज जनता को थोड़ी बहुत छुट है जो केवल लोकतंत्रा के चौथे स्तम्भ के कारण ...और अधिकारियी को तो पुरी छुट है .....पहले के जैसे  नेताओं का दबाव नहीं है ....
                 आपके बयान से जिले का हर वर्ग आहात हुआ है ......माना की किसी वर्ग  विशेष को आप घटिया बोल देते ....पर आपने तो जिले को ही घटिया बोल दिया .....वो भी पुरे देश में ......ठीक है कुछ मुद्दों पर आपकी असहमति जायज है ......आप पढ़े लिखे बहुत ही सभ्य व्यक्ति है आपका सम्मान है पर महोदय हम अगर ढोर गंवार है ....हमें बचपन से लेकर आज तक वैसी शिक्षा नहीं मिली न वैसा माहौल मिला तो इसमें हमारा क्या दोष .......बदलना ही है तो पुरे सिस्टम को बदलने का प्रयास करिए ना ......बयान दे देने से कोई घटियापन क्या दूर हो जाएगा ........
                    यहाँ की आदिवासी संस्कृति ,पुरातन परम्परा,प्रकृति का अनुपम उपहार,भविष्य के लिए अगर सुरक्षित नहीं किया गया तो वो दिन दूर नहीं जब प्रशाशन के संरक्षण में यहाँ भी कोरबा ,रायगढ़ जैसी स्थिति निर्मित हो जाए ...........कलेक्टर साहब ....केवल भौतिक विकाश से ही अच्छे और घटिया का वर्गीकरण ठीक नहीं है .....आपने आते ही कहा था की ....शिक्षा और स्वास्थय आपकी पहली प्राथमिकता होगी .....पर अपने अधिकारियों पर आपका ही नियंत्रण नही है ..................
                    चलिए आपके अनुसार शिक्षा को ही ले तो आज भी स्कुलो की हालत बदतर है ....आपकी कड़ाई से एक समय सब ठीक था पर लगाम ढीली पड़ने के बाद स्थिति जस की तस .......स्वास्थ विभाग की बात करे तो राष्ट्रीय छय नियंत्रण कार्यक्रंम और पोलियो टीकाकरण में विगत १० वर्षो में जितनी धांधली हुई है उतनी कभी नहीं हुई ...आप नहीं पर .आपकी ही कुर्सी का कमाल है ......की अब तक सम्बंधित अधिकारी जमे हुए है ..... मात्र है निर्माण को ले ले तो जिला पंचायत में कोई भी काम कमिसन पर पास करा लीजिये  .... यहाँ तो हालात ये है की बच्चा पैदा हो तो बाप बोलता है बेटा मेरे से भी बड़ा ठेकेदार बनना ....पैसा आ गया तो आवाज कहा उठेगी ......मांग कौन रखेगा .......जुलुस और धरना कौन करेगा .....वो तो एक दो अपवाद है जो हमेशा जनहित के बारे में सोचते है प्रयास भी करते है ......पर कही न कही राजनीती हावी हो जाती है .......

                   आदरणीय कलेक्टर महोदय निश्चित ही आपके बयान को लेकर राजनीती तो होगी ही .....आलोचना भी होगी .....पर निवेदन आपसे यही है साहब की नेताओ की चमचागिरी वाले अधिकारियों को अगर आप सही रास्ते पर ले आये तो आप ही कहेंगे हमारा जशपुर सुन्दर जशपुर ........बाकी आप खुद ही समझदार है .................

Tuesday, January 24, 2012

चाणक्य नीति:धन कमाने वाला विद्वान् समाज के लिए उपयोगी नहीं


चाणक्य नीति :-

अर्थाधीतांश्च यैवे ये शुद्रान्नभोजिनः
मं द्विज किं करिध्यन्ति निर्विषा इन पन्नगाः

जिस प्रकार विषहीन सर्प किसी को हानि नहीं पहुंचा सकता, उसी प्रकार जिस विद्वान ने धन कमाने के लिए वेदों का अध्ययन किया है वह कोई उपयोगी कार्य नहीं कर सकता क्योंकि वेदों का माया से कोई संबंध नहीं है। जो विद्वान प्रकृति के लोग असंस्कार लोगों के साथ भोजन करते हैं उन्हें भी समाज में समान नहीं मिलता।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या- आजकल अगर हम देखें तो अधिकतर वह लोग जो ज्ञान बांटते फिर रहे हैं उन्होंने भारतीय अध्यात्म के धर्मग्रंथों को अध्ययन किया इसलिये है कि वह अर्थोपार्जन कर सकें। यही वजह है कि वह एक तरफ माया और मोह को छोड़ने का संदेश देते हैं वही अपने लिये गुरूदक्षिणा के नाम भारी वसूली करते हैं। यही कारण है कि इतने सारे साधु और संत इस देश में होते भी अज्ञानता, निरक्षरता और अनैतिकता का बोलाबाला है क्योंकि उनके काम में निष्काम भाव का अभाव है। अनेक संत और उनके करोड़ों शिष्य होते हुए भी इस देश में ज्ञान और आदर्श संस्कारों का अभाव इस बात को दर्शाता है कि धर्मग्रंथों का अर्थोपार्जन करने वाले धर्म की स्थापना नही कर सकते।

सच तो यह है कि व्यक्ति को गुरू से शिक्षा लेकर धर्मग्रंथों का अध्ययन स्वयं ही करना चाहिए तभी उसमें ज्ञान उत्पन्न होता है पर यहंा तो गुरू पूरा ग्रंथ सुनाते जाते और लोग श्रवण कर घर चले जाते। बाबऔं की झोली उनके पैसो से भर जाती। प्रवचन समाप्त कर वह हिसाब लगाने बैठते कि क्या आया और फिर अपनी मायावी दुनियां के विस्तार में लग जाते हैं। जिन लोगों को सच में ज्ञान और भक्ति की प्यास है वह अब अपने स्कूली शिक्षकों को ही मन में गुरू धारण करें और फिर वेदों और अन्य धर्मग्रंथों का अध्ययन शुरू करें क्योंकि जिन अध्यात्म गुरूओं के पास वह जाते हैं वह बात सत्य की करते हैं पर उनके मन में माया का मोह होता है और वह न तो उनको ज्ञान दे सकते हैं न ही भक्ति की तरफ प्रेरित कर सकते हैं। वह करेंगे भी तो उसका प्रभाव नहीं होगा क्योंकि जिस भाव से वह दूर है वह हममें कैसे हो सकता है।

याद आ गया मेरा बचपन ...!

 ''नहर के आसपास फैला बेशरम की झाडियो का झुन्ड '' जिसके किनारे नाई की दुकान ....जहा जाने से डरा करते थे.....?.कही नाई कान न काट दे ? चौक के पास ताज चचा की साइकिल दुकान ...जहा अक्सर साइकिल बनवाने जाया करते ....उसी के बगल मे कपुर महाराज की पान दुकान जहा कभी कभी पिताजी पपिता खिलाया करते थे.....? पास ही थी दिले चाचा की होटल जहा जलेबी तैयार रहती थी,सन्तन चचा के घर के सामने दलदल [ जहा आज काम्प्ले़क्स है ] के बगल मे दोस्तो के साथ गिल्लि डन्डा और फ़िट्टुल खेला करते थे जहा सन्तन चचा की डाट रोज मिलती .....स्कुल से आते ही भाग जाया करते बाजारडाण्ड मे [ आज जहा बस स्टैण्ड है ] ... लुका छिपी का खेल खेलते खेलते पीछे बाजार डाण्ड की छपरी मे चले जाते .....साल भर सोचते की होली मे कौन सी छपरी से लकडी चुरानी है और होलिका दहन की पहली रात काम को अन्जाम भी दे देते और फिर घर जाने की सुध भी नही रहती थी और मा का डन्डा तैयार रह्ता बरसने को......हम जब स्कुल से वापस आते रह्ते तो थाना के पास आम बगीचे मे लटके हुए चमगादड बाजारडाण्ड की ओर सैर को निकलते रह्ते ....उन्ही के साथ हुम भी खेलकर वापस होते.........? पर अपनी आन्खो के सामने अपने बचपन की यादो को उजड्ते देखा [प्रशासनिक कार्यवही के मद्देनजर[ अवैध दुकानो] पुराने समय से बसे बगीचा बस स्टैन्ड और बाजारडान्ड की दुकानो को हटवा दिया गया ] आन्खो मे आसु आ गए..... मैने कहा कैसे सन्जोउ उस बच्पन को ........? शायद मै भाव विभोर हो गया था ..! दिल को तस्सली देते हुए मैने सोचा की बच्पन की यादो के नीव मे ही सुन्दर और सुव्यवस्थित निर्माण ही भविश्य को और अच्छा बना सकता है.... हे! प्रभु उन परिवारो की मदद करना जो रोज़ एक नया जीवन जीते है........और आप भी खयाल रखना..

Monday, January 23, 2012

क्या चुल्हा नही जलाने से पुल बन जाएगा ?

ग्राम सालेकेरा में आज भी अधुरा पडा पुल
                जहा मौक़ा मिले चौका नहीं छक्का मार लो ........? शायद जशपुर जिले की रीत बन गयी है ये .....आपको बता दे की सालेकेरा गाओ में पुलिया निर्माण में हुए ४५ लाख रुपये के गबन की जांच व दोषियों पर कार्यवाही की मांग को लेकर ३१ जनवरी को धरना देने जा रहे है जिसमे लगभग ५००० ग्रामीण अपने घरो में चूल्हे नही जलाएंगे.
राशी आहरण के २ वर्ष बाद पुल की स्थिति  
       ग्रामीणों का आक्रोश जायज है निश्चित ही वे अपने को छला हुआ महसूस कर रहे है .....ऐसे में क्या उनके भावनाओ के साथ खेलना उचित है .....? ठीक है मामला गबन का है दोसियो पर अवस्य कार्यवाही होनी चाहिए ,,कड़ी से कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए.....? पर मांग की बात आती है तो विकाश की जगह विनाश की बात सामने आती है ....जो  निश्चित ही राजनीती से प्रेरित होती है ! ऐसा ही कुछ यहाँ भी देखने को मिल रहा है ..............?
      मामला जुडा हुआ है पर्यटन अध्यक्ष और पूर्व मंत्री के बीच का अब आप समझ ही गए होंगे की कौन सी राजनीती चल रही है.......ग्रामीण ये मांग क्यों नहीं कर रहे है की हमें पुल चाहिए .......पुल तत्काल बनाया जाए .......निर्माण कार्य शुरू हो .......तत्काल कार्यवाही हो ..............? पर क्या करे नेताओ को पहले आपसी दुश्मनी निभानी है .........बाद में ग्रामीणों का हित  देखना है ....माना की पुल भी बनेगा ....दोषियों पर कार्यवाही भी होगी ...पर मामला राजनितीक रंग ले चुका है और अब आगे की योजना खटाई में पड़ने वाली है ....वो कैसे ....? या तो फिर थाने में मामला दर्ज हो जाएगा...... मामला न्यायालय में चला जाएगा  और फैसला आने में वर्षो बीत जाएगा ......पुल वही का वही ....ग्रामीण जस के तस ..........
ग्रामीणों ने बनाया लकड़ी का पुल
         ये कोई बनी बनाई बात नहीं है प्रामाणिक है जो आप भी देख सकते है जशपुर जिले में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार हुआ है तो बगीचा इलाके में वो भी लगभग ५ साल पहले .....सैकड़ो पुल बह गए .........बिना बनाए पैसे निकाल लिए गए .................फर्जी तरीके से बने हुए सड़क को दुबारा दिखाकर पैसा गबन कर लिया गया .....बड़े बड़े डेम के कार्य आज भी अधूरे है ......नहर का काम शुरू ही नहीं हुआ ......... कईपर अपराध पंजीबद्ध हो गया ..जो आज तक लम्बित है .................? अप तो आप समझ ही गए होंगे की मंजरे आलम क्या होगा ......?
           ठीक है अगर समाज सेवा ही करनी है ....ग्रामीणों का हितैषी ही बनना है जिले का भला ही करना है तो काम निस्वार्थ भाव से क्यों नहीं करते  .........? हर मामले में क्या राजनितीक रोटी सेंकना उचित है ...........? लोगो का माना है की उम्र  के साथ साथ विचारों में बड़प्पन भी आता है ,,गंभीरता का समावेश होता है ,,समाज के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना पैदा होती है , जिसमे कही स्वार्थ का समावेश नहीं होता ......? अब आप ही बताइये की .......क्या ऐसी स्वार्थ की राजनीती करना ठीक है ,,,,खैर जो भी हो हमारी तो यही भावना है की पहले पुल बन जाए और बाद में कार्यवाही भी हो जाए ......................


Saturday, January 21, 2012

न हमारी पुलिस न हमारा राज़ यहाँ तो सब गुंडाराज

                             

                       चौकिये मत जशपुर जिले के लिए ये कोई नहीं बात नहीं है,वाकई गुंडाराज तो है ही ! कभी जनता को पुलिस से दो चार होना पड़ता है तो कभी प्रशाशन से ......? पर जो भी हो डंडा तो आम जनता को ही खाना है !
ऐसे में जिला प्रशाशन के साथ साथ राज्य  सरकार को भी सोचना होगा की जशपुर जिले में ऐसी स्थिती क्यों निर्मित हो रही है.
                            बात बहुत बड़ी नही है पर हर आदमी का स्वाभिमान होता है कही न कही जब उसके स्वाभिमान  को ठेस पहुचती है तो फिर वह आक्रोशित हो उठता है और आक्रोश जब सडको पर आ जाए तो ""न हमारी पुलिस न हमारा राज़ यहाँ तो सब गुंडाराज""जैसे नारे सुनाई पड़ने लगते है!ऐसा नहीं है की जनता इतनी जागरूक है ही अपने हक़ के लिए वो सडको पर आ जाए अब भी लोगो में संकोच की भावना है पर धन्यवाद् पूर्व मंत्री जी का जिन्होंने जशपुर जिले के लोगो को खड़ा होना सिखा दिया २५ वर्षो के कार्यकाल में जितनी जनजागरूकता रैली नहीं हुई उससे कही ज्यादा इन ३ वर्षो में करा दिया.हो सकता है इसके पीछे कोई स्वार्थ छिपा हो लेकिन जो भी जिले का भला ही होगा ! लोग आने वाले समय के लिए तैयार हो रहे है अपने हक़ की लड़ाई के लिए खड़े होना सिख रहे है.
                            राजनिती से प्रेरित ही कोई रैली या सभा क्यों न हो माध्यम तो जनता और प्रशाशन ही होती है!कभी गाज जनता पर तो कभी प्रशाशन पर पड़ती है लेकिन वो समय कब आयेगा ? जब लोग डंडा नेताओ और शाशन के लिए चलाएंगे . क्या इतनी जागरूकता आयेगी ? राजनीती की कूटरचना में शामिल होने वाली जनता का फायदा तो नेता उठा लेते है पर कभी कभी जब दाव उलटा हो जाता है तो नेताओ को मुह की खानी पड़ती है ! ऐसा ही वाकया बगीचा के एस डी ओ पी के साथ देखने को मिला था जिसमे नेताओ ने एस डी ओ पी को हटाने और निलंबीत करने की मांग को लेकर लोगो को धरने पर बैठाकर चक्का जा म कर दिया और जनबल बढ़ते देख मामले को ठंडा करने का प्रयास भी किया ताकी एस डी ओ पी को उनकी ताकत का पता चल जाए और उनके मुताबिक काम हो सके पर दाव उलटा पड़ गया और जनता ने खुद ही मोर्चा सम्हाल लिया ! क्योकी जनता त्रस्त थी और भुक्त भोगी भी ................?
                           आखीर कब तक राजनीती की दुश्प्रेरना से लोग सड़क पर आते रहेंगे ....? कब लोग जागरूक होंगे .....? आने वाला समय जशपुर जिले के लिए बहुत ही घातक सिद्ध होने वाला है ......? अभी तो प्रशासन का कहर कुछ भी नहीं पर उन दिनों को अभी से सोच लेना होगा जब पूरा गाँव का गाँव शाशन अधिग्रहित कर लेगी ......? जिले में बड़े बड़े उद्योगों की स्थापना हो जायेगी.......? क्युकी ये भी सच है की जशपुर जिले की लगभग ६० प्रतिशत से भी अधिक भूमी का अनुबंध  राज्या सरकार ने  उद्योगों के साथ कर लिया है .........?
                           शाशन व प्रशाशन को इस और ध्यान देना होगा .....सभी कार्यवाहीयो में मानवीय संवेदनाओं का होना अति आवश्यक है .......कही ऐसा ना हो की लोग इतने आक्रामक हो जाये की उन्हें  हथियार उठाने पर विवश होना पड़े ..........जरुरी है पुलिस के साथ साथ प्रशाशन को भी की जनता की हर बात पर गौर करे ......?एक ऐसा सम्बन्ध बने जो विश्वाश पर टिका हो ........? आगरा जनता को प्रशाशन अपने विश्वाश में ले ले तो निश्चित ही किसी भी बड़ी अप्रिय आशंका को टला जा सकता है  

Friday, January 20, 2012

बीजेपी मे बज गया गुट्बाजी का डन्का


सांसद दिलीप सिंह जूदेव                                                  पूर्व मंत्री  गणेश राम भगत 


 जशपुर में फिर से एक बार बीजेपी में गुटबाजी का डंका बजा है और इस बार सामने आये हैं छ.ग के कद्दावर आदिवासी नेता और बीजेपी सरकार के पूर्व मंत्री गणेश राम भगत , ,ग में कथित रूप से चल रहे प्रसासनिक आतंकवाद और इस मुद्दे पर राजनीति करने वालों को भगत ने आड़े हाँथ लिया है और कहा है कि कुछ दलाल और बिचौलिए किस्म के लोग छ.सरकार और बीजेपी को बदनाम करना चाहते है ,जशपुर बिधायक जागेश्वर राम भगत के द्वारा प्रसासनिक आतंकवाद का आरोप लगाकर धरना पर बैठने कि घटना को उन्होंने कुछ दलालों कि चाल बताया और कहा कि आदिवासी बिधायक को गुमराह करके कुछ लोग राजनीति कि रोती सेंक रहे हैं .............
                                                              छ.ग सरकार में मंत्री रहे गणेश राम भगत इन दिनों काफी गुस्से में है और उनका कहना है कि सरकार जब कुछ अच्छा काम करती है तो दलाल और बिचौलियों को दर्द होना शरू हो जाता है ,एक माह पहले जशपुर के बगीचा में आदिवासियों को बेघर किये जाने कि बवाट को भगत ने सिरे से झूठलाते हुए कहा कि आम जनता सरकार के इस काम से काफी खुश है लेकिन जो ये नहीं चाहते कि सरकार का नाम हो उन्होंने इस काम को प्रसासनिक आतंकवाद का नाम दे दिया .आदिवासियों के हित में प्रशासन के खिलाफ एलान ए जंग छेदने वाले जशपुर के आदिवासी बिधायक जागेश्वर राम द्वारा धरना पर बैठने कि घटना को उन्होंने सरासर गलत बताया और कहा कि उनके बिधायक काफी सीधे सादे है और उनके सीधेपन का लोगों ने भरपूर लाभ उठाया ....
छ.ग के कई जिलों में चल रहे अतिक्रमण हटाओ अभियान के बारे में भगत ने कहा कि सरकार चाहती है कि छ.ग के सभी जिले सुन्दर बने ताकि जो बाहर से आयें वो यहाँ कि सहर कि तारीफ़ करें और जहा तक घरों को तोड़ने कि८ बात है तो किसी का घर नहीं तोड़ा गया है न ही कोई प्रसासनिक आतंकवाद जैसी बात है .भगत ने प्रशासन कि जोरदार वकालत कि और कहा कि जिनके घर तोड़े गए उनके पुनर्वास कि व्यवस्था कराई जा रही है ...
प्रसासनिक आतंकवाद लोगों के मन में घर न कर जाए और लोग कही इसे गंभीरता से न ले लेन इसलिए गणेश राम भगत  गाँव गाँव जाकर लोगों के सामने सरकार और जशपुर जिला प्रशासन का पक्ष रख़ रहे हैं और लोगों को बता रहे हैं कि सरकार जो कुछ भी कर रही है सही कर रही है और प्रशासन जो कुछ भी कर रहा है सही कर रहा है लेकिन जब प्रसासनिक आतंकवाद के मुद्दे पर उनसे सवाल किया गया तो उन्होंने इस मामले को ही सिरे से खारिज कर दिया और कह दिया कि उन्हें कुछ पता ही नहीं है .
                             यहाँ यह गौरतलब है कि बीजेपी सांसद और बीजेपी के कदावर नेता दिलीप सिंह जूदेव ने सबसे पहले प्रसासनिक आतंकवाद का मुद्दा उठाया था बल्कि उन्होंने सी एम् डॉ रमन सिंह को पत्र भी लिखा था जिसमे उन्होंने कहा था कि छ. ग प्रसासनिक आतंकवाद चरम पे है इसके बाद जसह्पुर के बगीचा में जस्श्पुर बिधायक जागेश्वर राम जब धरने पर बैठे थे तो उन्होंने हमें बताया था कि वो जो कुछ कर रहे हैं उसमे दिलीप सिंह जूदेव कि सहमति है ...
                                                      अब  यह बताने कि जरूरत नहीं है कि पूर्व मंत्री का गुस्सा किसके ऊपर है और उन्होंने बिच्झौय्लिया और दलाल किसको कहा है जाहिर है सरकार जितनी भी सुरक्षित हो लेकिन अगर बीजेपी कि बात करें तो  गुटबाजी का डंका बड़े जोर से बज रहा है ....................................................


Thursday, January 19, 2012

नेताओं की बिखरती राजनीति में जनता एकजुट



गुटबाजी से नुकसान जनता का
विधायक का पलटवार भाजपा के दोनों नेताओं में वाक युद्ध जारी।

जशपुर - यूं तो जशपुर जिले की राजनीति में गुटबाजी जगजाहिर है जो अब चरम पर है। एक ओर विधायक जगेश्वर राम भगत जनता का साथ देते हुए नजर आ रहे हैं वहीं दूसरी ओर पूर्व मत्री भगत आदिवासियों की आड़ में अपना राजनीतिक भविष्य संवारने की जोर जुगत में लगे हुए हैं। जूदेव समर्थकों सहित विधायक को पूर्व मंत्री गणेश राम भगत ने दलालों के चंगुल में निहित स्वार्थ के लिए कार्य करना बताया जिसपर पलटवार करते हुए विधायक भगत ने पूर्व मंत्री गणेश राम भगत को पार्टी के लिए सबसे ज्यादा बगावत करने वाले नेता बता दिया। अब तो आलम यह है कि दोनों नेताओं की लड़ाई अब सड़कों पर आ गई है और वाकयुद्ध शुरू हो चुका है।

अस्तित्व की लड़ाई में जनता लाचार
लंबे समय से जूदेव समेत भगत समर्थकों में अस्तित्व की लड़ाई जारी है जिसका खामियाजा आम जनता को उठाना पड़ रहा है। आज जनता के सामने इधर कुंआ उधर खाई जैसी समस्या आ खड़ी हुई है । लोगों में इतनी लाचारी कभी नहीं दिखी जहां अपने ही नेताओं के बीच आज वे बेगाने होकर रह गए हैं। राजनीति के इस वाकयुद्ध में जनता की समस्या के प्रति कोई गंभीर नहीं दिख रहा है। जहां विधायक ने प्रशासन की कार्यवाही को अवैधानिक बताते हुए जनहित में धरना भी किया वहीं पूर्व मंत्री ने अपना जनबल कम होते देख जनजाजीय सुरक्षा मंच की आड़ में कई कार्यक्रमों में विधायक पर दलालों के इशारे पर काम करने जैसा आरोप भी लगा दिया। अब ऐसे में आखिर जनता किसके पास जाए।


विधायक बनाम पूर्व म़ंत्री
विधायक जगेश्वर राम भगत को जहां जूदेव का समर्थन मिला हुआ है वहीं पूर्व मंत्री गणेश राम भगत की जूदेव से टशन जगजाहिर है। जनजातीय सुरक्षा मंच के माध्यम से अपने जनबल को मजबुत करने के प्रयास में पूर्व मंत्री अपने कार्यक्रमों में रमन सरकार की प्रश्ंासा कर भविष्य में राजनीतिक सरंजाम जुटाने की पुरजोर कोशिश करते नजर आ रहे हैं जबकि विधायक जगेश्वर राम को पार्टी से कार्यवाही व भविष्य की कोई ंिचंता नहीं हैं वह तो केवल अपनी जनता के साथ हैं अगर उनकी जनता दुखी और परेशान होगी तो निश्चित ही उन्हें भी दुख होगा। यहां तक की अपनी जनता के लिए विधायक हमेशा मर मिटने के लिए भी तैयार हैं।

कायम है जूदेव का जादू
इतना तो तय है कि जिले की राजनीति में आज भी केन्द्रीय संगठन का कोई हस्तक्षेप बिना जूदेव की सहमति के नहीं होता ऐसे में जूदेव से बगावत कर पूर्व मंत्री कौन सा स्वार्थ साधना चाहते हैं। आज भी पार्टी के किसी भी कार्यक्रम में हमेशा जय जूदेव के नारांे से ही कार्यक्रम की शुरूआत होती है। जिले में जूदेव का जादू आज भी कायम है ऐसे में जूदेव समर्थक विधायक जगेश्वर राम भगत और पूर्वमंत्री गण्ेाश राम भगत की लड़ाई में कौन सरताज होगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

Wednesday, January 18, 2012

आदिवासीयों की आड़ में राजनीति शुरू

आदिवासीयों की आड़ में राजनीति शुरू
            लंबे समय के बाद एक बार फिर जिले की राजनीति गरमा गई है। युं तो यहां का इतिहास रहा है कि आदिवासीयों के विकास और उनके संस्कृति की सुरक्षा की आड़ में हमेशा राजनीति होती आई है जो आज भी जारी है पर आज भी उनकी स्थिति जस की तस बनी हुई है। यहां आपको बताना लाजिमी होगा कि बीते दिनों अतिक्रमण हटाने की आड़ में आम जनता को प्रशासन की दबंगई से दो चार होना पड़ा था। जिसमें जिले के कई गंाव समेत बगीचा,दुर्गापारा,बिमड़ा और आसपास के गावों में आदिवासी बीपीएल परिवारों समेत नगरीय क्षेत्र में भी लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था जिससे कई तो बेघर हो गए तो कइयों के सामने रोजी रोटी की समस्या आ खड़ी हुई। सारे नियम कानून को ताक में रखकर सीमित समय में ही जेसीबी के द्वारा प्रशासनिक भय का वातावरण निर्मित कर जबरिया कार्यवाही की गई जिसमें कोई भी जनप्रतिनिधी सामने नहीं आया। परंतु विधानसभा सत्र के दौरान जशपुर विधायक जगेश्वर राम के सामने यह बाते आई जिसके बाद विधायक ने इस प्रकार की अन्यायपूर्ण कार्यवाही पर रोक लगाने और पीड़ितों को मुआवजा के लिए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा और कलेक्टर को भी निर्देशित किया। जिसपर कलेक्टर ने त्वरित कार्यवाही करते हुए स्वयं क्षेत्र का दौरा किया और पीड़ितों से मिले और उनकी समुचित व्यवस्था की। पर वहीं अब पार्टी के ही वरिष्ठ कार्यकर्ता व पूर्व मंत्री गणेश राम ने जनता के हित में विधायक के धरने को दलालों का षडयंत्र बता दिया । अब लोगों का मानना है कि जूदेव के समर्थन व विधायक के धरने को दरकिनार कर एक बार फिर से पूर्व मंत्री आदिवासीयों की आड़ में अपनी रोटी सेंकने की जोर जुगत में लग गए हैं।
            पर सवाल यह है कि अगर प्रशासनिक कार्यवाही सही तरीके से हुई तो फिर जिले के कलेक्टर को क्यों आना पड़ा। पीड़ितों को मुआवजा की राशि क्यों दी गई। बगीचा में लोगों को अतिक्रमण हटाने का नोटिस देकर उसे फिर वापस क्यों ले लिया गया। पूरे जिले में प्रशासनिक फेरबदल क्यों किया गया। विधायक को अपने ही शासन में प्रशासन के खिलाफ धरना में क्यों बैठना पड़ा और अंततः प्रशासनिक आतंक को लेकर जूदेव ने सीएम को पत्र क्यों लिखा। ऐसे कई अनसुलझे सवाल हैं जिनका जवाब शायद पूर्व मंत्री के पास भी नहीं पर सोची समझी रणनीति के तहत जनजातीय सुरक्षा मंच के कार्यक्रम का राजनीतिकरण कर दिया गया और विधायक के धरने पर ही कार्यक्रम केंद्रित हो गया। आखिर प्रशासन से कहीं न कहीं चुक जरूर हुई है जिसका खमियाजा आम जनता को उठाना पड़ रहा है और अब आलम यह है कि विधायक के भारी जनसमर्थन को देखते हुए पूर्व मंत्री भी इसी का फायदा उठाते हुए अतिक्रमण की कार्यवाही को सही बताकर प्रशासन को अपने साथ मिलाने का प्रयास कर रहे हैं ताकि लोग प्रशासनिक कार्यवाही से इतना तंग हो जाएं कि टूटकर फिर से उनके साथ जुड़ जाएं और उनकी राजनीति फिर से शुरू हो जाए।
उभरकर सामने आई गुटबाजी
            जशपुर जिले की राजनीति में गुटबाजी आम है पर एक समय में कयास लगाए जा रहे थे कि संसदीय सचिव युद्धवीर और गणेश राम भगत के हाथ मिला लेने के बाद पार्टी हित में सभी मिलकर कार्य करेंगे पर इस आमसभा में पूर्वमंत्री भगत ने पूरे भाषण में विधायक के धरने को ही षडयंत्र बता दिया जबकि विधायक ने बताया कि जनता व जूदेव समेत पूरे ग्रामीणों के समर्थन से ही धरना का कार्यक्रम सुनिश्चित किया गया था। अब सवाल यह है कि क्या फिर से पार्टी की गुटबाजी से लोगों को दो चार होना पड़ेगा। जनता के हित में खड़े होने वाले विधायक को पार्टी हित में जनता के साथ प्रशासनिक आतंक बर्दाश्त करना उचित होगा या फिर पूर्व मंत्री के जैसे प्रशासन की जबरिया कार्यवाही को सही बताते हुए अपनी रोटी सेंकने के लिए लोगों को गुमराह किया जाना सही होगा।

            आखिर कब तक आम जनता को राजनैतिक पार्टीयों की गुटबाजी का खमियाजा भुगतना पडे़गा। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि पूर्व मंत्री के बयान के बाद अब जनता के हित में विधायक का अगला कदम क्या होगा।

हम महानता की ओर क्यों न चलें ?



 लोग बुराई और भलाई के बारे में अपने अलग-अलग दृष्टिïकोण बनाते हैं और चाहते हैं कि सभी लोग उस ढंग पर चलें। एक दूसरे में दोष देखने का यही कारण है।
 दूसरों के सबंध में बुरा कहने वाला मैं कौन हूँ? दूसरों पर बुरा होने का दोष मैं कैसे मढ़ सकता हूँ, जब मैं स्वयं पाप से दूर नहीं हूँ। ऐ मेरे मन! दूसरों के दोष निकालने से पहले अपने आप को मिलनसार और निरभिमानी बना। दूसरों के दोष और बुराइयों को देखने से पूर्व अपनी बुराइयों और दोषों को देखो। कबीर ने बहुत सुंदर कहा है-बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझ सा बुरा न कोय॥ पवित्र हृदय वाला व्यक्ति दूसरों में बुराई देखना छोड़ देता है। दूसरों से घृणा करना, अपने आप को धोखा देना है। प्रेम करना, स्वयं को प्रकाश में लाना है। कोई भी व्यक्ति अपने आपको व दूसरों को ठीक प्रकार से तब तक नहीं समझ  सकता, जब तक घृणा को त्याग कर प्रेम न करने लगे। जो व्यक्ति अपने ही मन को ग्रहण करने योग्य समझता है, वह उन्हीं व्यक्तियों से प्रेम करता है जो उसके विचारों के प्रतिकूल चलते हैं, उनसे वह घृणा करता है।
 वास्तव में आगे बढऩे की कला को उसी ने समझा है, जिसने अपने हृदय को  उपर्युक्त प्रकार से मोड़ लिया है।