इतिहास के पन्ने उलटते वक्त,
उन लूटेरों ने, अँग्रेजों ने
लूटा होगा , छलनी किया होगा
हमारे देश की जनता को,
हमारी संस्कृति को , सभ्यता को ,
हमारी धरोहर को ।
मन में अजीब से चित्र घुमने लगते हैं ।
मन-ही-मन उन्हें गालियाँ देता हूँ
और फिर सो जाता हूँ,
चैन की नींद ,
कि चलो अब तो हम आजाद हैं ।
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और अगली ही सुबह,
अखबार में देखता हूँ -
आतंक के साये में डर-डर के जीते लोग,
भ्रष्ट नेताओं की चाल में बलि चढती भोली-भाली जनता,
आधे पेट खाकर जीवन-यापन करता परिवार,
अपनी ही हालत पे रोते सरकारी दफ़्तर,
अस्पताल और ना जाने कितने समस्याओं से जूझता अपना राष्ट्र ।
मन में फिर सवाल उठता है ,
क्या हम सचमुच आजाद हैं ?
फिर मुँह से भद्दी गालियाँ निकलती हैं ,
उन भ्रष्ट नेताओं के लिये , आतंकवादियों के लिये ।
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पर क्यों , किसलिए ?
मैं क्यों उनसे इतनी घृणा करता हूँ ?
उनने जो कुछ भी किया ,
अपने स्वार्थवश अथवा अज्ञानवश |
पर मैनें क्या किया
अपने देश के लिए ?
कहीं मैं भी तो जिम्मेवार नहीं ,
इन सब के लिए ?
फिर से वही प्रश्न
और मैं उलझ पड़ता हूँ, अपने-आप से ।
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मुझे कोई अधिकार नहीं ,
किसी से घृणा करने का।
मुझे घृणा है ,
तो अपने आप से , अपनी मूकदर्शिता से ,
अपनी अकर्मण्यता से
अपनी उस खुद की बनाई हुई मजबूरी से ,
जो मुझे कुछ करने नहीं देता,
अपने स्व से उठकर ।
उस मोह से , उस बंधन से ,
जो मुझे सीमित करता है ,
अपने-आप तक , अपने परिवार तक ।
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लेकिन फिर, अगर ये ही मेरा पूरा सच है ,
तो मन में इतनी उथल-पुथल क्यों ?
इतनी घुटन क्यों?ये उबाल क्यों ?
संभवतः ये संकेत हैं ,
कि मेरा भावनाएँ अभी मरी नहीं ,
सुसुप्त भले ही हैं ।
मानो जागने के लिए इंतजार हो,
किसी क्षण-विशेष का ।
जब ये सीमाएँ टूटेंगी ,
जब कोई मोह नहीं ,
कोई बंधन नहीं बस एक जूनून ,
कि मिटा दूँगा हर उस छोटी - बड़ी शक्ति को,
जो छीनती है हमसे हमारी आजादी , हमारा चैन ।
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इसलिए ,
हे देश के भ्रष्ट-स्वार्थी नेताओं ,
हमारी अमन-शांति छीनने वाले आतंकवादियों ,
और हमारी तरक्की से जलने वाले राष्ट्रों
चेतो ।
हमारे भीतर की उबाल को
कम मत आँको ।
क्योंकि इनमें इतनी ऊर्जा है ,
कि ये सुनामी बनकर ,
महलों को भी मिट्टी में परिणत कर सकती है ।
Kya Baat Hai yogesh bai............
ReplyDeleteSinha KUNKURI
9425574117