''नहर के आसपास फैला बेशरम की झाडियो का झुन्ड '' जिसके किनारे नाई की दुकान ....जहा जाने से डरा करते थे.....?.कही नाई कान न काट दे ? चौक के पास ताज चचा की साइकिल दुकान ...जहा अक्सर साइकिल बनवाने जाया करते ....उसी के बगल मे कपुर महाराज की पान दुकान जहा कभी कभी पिताजी पपिता खिलाया करते थे.....? पास ही थी दिले चाचा की होटल जहा जलेबी तैयार रहती थी,सन्तन चचा के घर के सामने दलदल [ जहा आज काम्प्ले़क्स है ] के बगल मे दोस्तो के साथ गिल्लि डन्डा और फ़िट्टुल खेला करते थे जहा सन्तन चचा की डाट रोज मिलती .....स्कुल से आते ही भाग जाया करते बाजारडाण्ड मे [ आज जहा बस स्टैण्ड है ] ... लुका छिपी का खेल खेलते खेलते पीछे बाजार डाण्ड की छपरी मे चले जाते .....साल भर सोचते की होली मे कौन सी छपरी से लकडी चुरानी है और होलिका दहन की पहली रात काम को अन्जाम भी दे देते और फिर घर जाने की सुध भी नही रहती थी और मा का डन्डा तैयार रह्ता बरसने को......हम जब स्कुल से वापस आते रह्ते तो थाना के पास आम बगीचे मे लटके हुए चमगादड बाजारडाण्ड की ओर सैर को निकलते रह्ते ....उन्ही के साथ हुम भी खेलकर वापस होते.........? पर अपनी आन्खो के सामने अपने बचपन की यादो को उजड्ते देखा [प्रशासनिक कार्यवही के मद्देनजर[ अवैध दुकानो] पुराने समय से बसे बगीचा बस स्टैन्ड और बाजारडान्ड की दुकानो को हटवा दिया गया ] आन्खो मे आसु आ गए..... मैने कहा कैसे सन्जोउ उस बच्पन को ........? शायद मै भाव विभोर हो गया था ..! दिल को तस्सली देते हुए मैने सोचा की बच्पन की यादो के नीव मे ही सुन्दर और सुव्यवस्थित निर्माण ही भविश्य को और अच्छा बना सकता है.... हे! प्रभु उन परिवारो की मदद करना जो रोज़ एक नया जीवन जीते है........और आप भी खयाल रखना..
apne comments yahaa dein ....
ReplyDelete