Thursday, April 25, 2013

“मैं प्रधानमंत्री”

!! समर्थन के  स्वरों में एक विरोध मेरा भी !!

भारत की राजनीति को इस समय ‘जान-बूझ’ कर मोदीमय सा बनाया जा रहा है। नरेन्द्र मोदी के जिक्र के बिना शायद ही कोई दिन बीतता हो। इसे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नजरें जमाए नरेन्द्र मोदी की कुशल रणनीति भी कह सकते हैं। ‘जान-बूझ’ शब्द का प्रयोग मैंने इसलिए किया क्यूंकि २७ साल तक पश्चिमी बंगाल पर शासन करने वाले ज्योति बासु जी तक भारत में कभी प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के लिए इस तरह प्रचारित नही किये गए जिस तरह मात्र तीन जीत पर नरेन्द्र मोदी जी का नाम उछाला जा रहा है। हालाँकि ये वातारवरण मोदीमय तब है जब की खुद भारतीय जनता पार्टी में “मैं प्रधानमंत्री” “मैं प्रधानमंत्री” का जाप करने वाले कम से कम ५ अन्य नेता हैं। यहाँ पर ध्यान देने योग्य एक बात और है कि जिन्हें (जनता) सांसद चुनना है वो प्रधानमंत्री चुनने में कयासबाजी कर रही है और जिन्हें (सांसद) प्रधानमंत्री चुनना है वो आपस में सर फुट्टवल कर रहे हैं। लेकिन बात यहाँ सिर्फ राजनीति को ही मोदीमय बनाने तक ही सीमित नहीं है बल्कि सोशल साइट्स पर भी नरेन्द्र मोदी की धूम दिखाई पड़ रही है, पूरा वातावरण ऐसा बनाया जा रहा है कि जैसे श्री नरेन्द्र मोदी जी के भारत के प्रधानमंत्री की कुर्सी सम्हालते ही सारी दिक्कते तुरंत ही दूर हो जाएँगी। जैसे अगर आपकी बीवी से आपकी ना बन रही हो या आपके इन्टरनेट की स्पीड कम आ रही हो, आपको अपनी गाड़ी के लोन न मिल रहा हो या आपकी माता जी के घुटनों में समस्या रहती हो..आदि-आदि।


हालाँकि ये बात अलग है कि दिन-ब-दिन राय बदलती रहती है नरेन्द्र भाई की अनेकानेक मुद्दों पर, तभी तो अपनी पत्नी यशोदा बेन पर हमेशा चुप रहने वाले और शशि थरूर की पत्नी की तुलना ५० करोड़ की गर्ल फ्रैंड से करने वाले मोदी जी हाल में ही ले मेरेडियन होटल में फिक्की की महिला शाखा के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए देश में महिलाओं की भूमिका पर लम्बा-चौड़ा भाषण दे आये। यहाँ पर यह बात भी गौरतलब है की जसू बेन का तो उन्होंने गुणगान कर दिया लेकिन यशोदा बेन के बारे में आज तक कुछ भी नहीं बोला।
असहिष्णुता भारतीय राजनीति और आम जनता के लिये कोई नया विशेषण नहीं है। अमूमन दक्षिण एशिया के लोग भावुक होते ही हैं और जिस विचारधारा या नेता का समर्थन करते हैं उसके खिलाफ बात सुन नहीं सकते। विरोधियों की अच्छी बातों का सम्मान करना भी उनके स्वभाव में शामिल नहीं होता। शायद इसी वजह से मोदी की आलोचनाओं को भी उनके समर्थक केवल एक आलोचना के तौर पर ना लेकर व्यक्तिगत तौर पर आलोचक को ही घेरने का काम करने लगते हैं और ठीक यहीं पर मुद्दा गौड़ होता जाता है और व्यक्ति प्रधान। 
कुछ ऐसा ही अरविन्द केजरीवाल के साथ भी हो रहा है। आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं नें उन्हें वो जगह दे दी है जिनके आगे हर मुद्दें छोटे दिखने लगे और सिर्फ अरविन्द केजरीवाल का नाम ही काफी हो, शायद इसीलिए अब तक अरविन्द केजरीवाल की तमाम मुद्दों पर वास्तविक सोच क्या है, इसका पता तक नहीं चल सका है। लेकिन ये न्यायोचित वातावरण नहीं है। विचारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सबको होनी चाहिए लेकिन मोदी और केजरीवाल समर्थकों के साथ स्थिति दूसरी है। वे ना केवल खुद उनका समर्थन करेंगे बल्कि आपको भी लगातार समर्थन करने के लिए मजबूर करेंगे।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आज के समय में सोशल मीडिया एक बड़ी ताकत बन कर उभरा है और उस सोशल मीडिया पर बीजेपी को चाहने वाला एक बड़ा वर्ग मौजूद है। लेकिन यहाँ पर ये बात भी दिलचस्प है की बीजेपी को मिलने वाले समर्थन में भी यहाँ पर दो भाग है। एक नरेन्द्र मोदी के समर्थक हैं और दूसरे, हिंदुत्व की कट्टरवादी विचारधारा के अनुयायी संघ को आदर्श मानने वाले समर्थक। दोनों ही समर्थक भावनाओं की अतिरेकिता में विश्वास करते है बिना इस तथ्य को देखते हुए की वर्तमान परिस्थितियों में भाजपा भी एक राजनैतिक दल के रूप में कांग्रेस की ही तरह डिस्क्रेडिट हो चुकी है। और यही समय की पुकार भी है की हम उन्ही लोगों को देश का सञ्चालन करने के लिए आगे करें जो अगर भ्रष्टाचार के विरुद्ध बोले तो अपने राज्य में भी प्रभावी लोकायुक्त की नियुक्ति करे। हमें ऐसे ही लोगों को आगे करना चाहिए जो अगर दूसरों को संयम सिखाएं तो अपना भी किसी टीवी इंटरव्यू में सवालों को छोड़कर उठ कर ना खड़े हो बल्कि संयम के साथ उसका सामना करे। हमें ऐसा व्यक्ति चाहिए जो दूसरों की कमियों को गिनाते हुए ऐसे तर्कों से परहेज करे कि ‘ये सब तो संविधान द्वारा दी गयी चीज़ें हैं ,केंद्र में जो भी सरकार होगी जनहित में एक्ट लागू करना उसकी जिम्मेदारी है’ क्यूंकि ठीक यही तर्क तो फिर उनके अपने राज्य पर भी लागू होगा और फिर उनका ‘मैंने किया’ वाला क्रेडिट तो खत्म हो जायेगा। हमें ऐसे व्यक्ति को आगे करना चाहिए जो अगर सबको साथ लेकर चलने को बोले तो फिर उसके किसी कॉलेज के प्रोग्राम में मुस्लिम छात्रों को क्यूँ प्रवेश नहीं मिलता? कुलदीप नैयर के एक बयान को याद करूँ तो ‘मोदी ने गुजरात को झांसा दिया है। उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की है कि गुजरात के लोग भारत के बाकी लोगों से अलग हैं। अगर पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने ऐसा किया होता तो सारा देश उनके खिलाफ यह कहते हुए खड़ा हो जाता कि वह सिख आतंकवाद को उकसा रहे हैं।’ क्या गलत है इस बयान में? क्या मोदी जी की भाषा अलगाववाद जैसी महक नहीं देती है? एक देश के अन्दर ही दो देश बनाने कि मंशा नहीं दिखती है? मेरे गुजरात नें भारत को ये दिया , मेरे गुजरात नें ये किया जैसे बयान ना केवल बीजेपी के राष्ट्रवाद से अलग है वरन देश की एकता के लिए भी खतरा जैसे हैं। मैं किसी भी अन्य दल का समर्थन नहीं कर रहा हूँ ना ही मुझे बीजेपी से कोई दिक्कत है लेकिन हाँ, एक नेत्रत्व्कर्ता के तौर पर मुझे नरेन्द्र भाई मोदी से जरूर डर लगता है। मुझे उनकी पगड़ी से डर लगता है क्यूंकि उसके ऊपर अगर जालीदार टोपी रख भी दें तो भी वो गिर जाएगी। मुझे उनके असंयम से डर लगता है क्यूंकि मैंने कई बार उन्हें कुछ सवालों पर उखड़ते हुए देखा है। मुझे उनके ‘मैं’ से डर लगता है क्यूंकि बाकी तो ‘हम’ हैं और मुझे उनके विजन से भी डर लगता है क्यूंकि ये विजन किसी सृजन की बुनियाद पर नहीं शुरू हुआ था।

Saturday, August 11, 2012

आर्थिक और राजनैतिक हैसियत से तय होती है भाषा की ताकत






                                   आधुनिक दौर में बोली के रूप में तो हिंदी समृद्ध हो रही है, लेकिन ज्ञान की भाषा के रूप में हिंदी की स्थिति चिंताजनक है। हिंदी भाषा का इतिहास काफी प्राचीन है। हिंदी पारसी भाषा का शब्द है। जिसका अर्थ होता है हिंदी का या हिंद से संबंधित। इस शब्द की उत्पत्ति सिंधु.सिंध से हुई है। इरानी भाषा में स को ह बोला जाता था। वर्तमान में हम जिस हिंदी भाषा को जानते हैं, वह आधुनिक आर्य भाषाओं में एक है। आर्य भाषा का प्राचीनतम् रूप वैदिक संस्कृत है। संस्कृत उस समय की बोल.चाल की भाषा थी। करीब ५०० ईसा पूर्व के बाद तक आधारभूत बोलचाल की भाषा संस्कृत काफी बदल गई। जिसे पालि कहा गया। कालांतर में पालि भाषा भी अपभ्रंशित होकर पाकृत भाषा बनी। समय के साथ.साथ भाषा अपभ्रंशित होती रही। १००० ई के आसपास अपभ्रंश से विभिन्न क्षेत्रीय रूपों से आधुनिक आर्य भाषा का जन्म हुआ। अपभ्रंश से ही हिंदी का भी जन्म हुआ। देश की आजादी के बाद १४ सितंबर १९४९ में हिंदी भाषा को देश की संविधान सभा ने राष्ट्रीय ऑफिशियल लैंग्वेज के रूप में घोषित किया गया है। इसके बाद से ही इस दिन को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
                                 आमतौर पर यह माना जाता है कि हिंदी भाषा का सबसे अधिक संघर्ष बोलियों और स्थानीय भाषाओं से है। इस भाषायी संघर्ष में राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को सबसे ज्यादा खतरा है। यह विचार उचित प्रतीत नहीं होता है। व्यवहारिक रूप में देखा जाए तो हिंदी का बोलियों और क्षेत्रीय भाषाओं के साथ टकराव का छद्म वातावरण तैयार किया जा रहा है। वास्तविकता यह है कि बोलियों और स्थानीय भाषाओं से ही हिंदी बोलचाल की भाषा के रूप में समृद्ध हो रही है। चाहे वह मराठी,भोजपुरी, मैथिल, छत्तीसगढ़ी आदि स्थानीय भाषाएं हों या अन्य बोलियां। इनसे हिंदी ने काफी कुछ ग्रहण किया है। हालांकि इसके बावजूद हिन्दी ज्ञान की भाषा के रूप में काफी पीछे हो चली है। जो हिंदी प्रेमियों के लिए चिंता की बात है। आधुनिक युग इलेक्ट्रॉनिक व संचार साधनों एवं उन्नत तकनीक का है। इन तकनीको को विकसित करने में अंग्रेजी भाषा की ही भूमिका रही है। हिंदी भाषा कभी भी तकनीकी भाषा नहीं बन पाई। जिसकी पृष्ठभूमि में राजनीतिक और आर्थिक हैसियत ही रही।
                                किसी देश, राज्य या स्थान की राजनैतिक और आर्थिक हैसियत से ही भाषा की ताकत तय होती है। एक समय था जब विश्व पटल पर सोवियत रूस एक बड़ी ताकत था। आर्थिक रूप से भी और राजनैतिक रूप से भी। उस वक्त पूरे विश्व में रूसी भाषा सीखने के लिए लोग लालायित रहते थे और उनकी बड़ी संख्या थी। सोवियत रूस के विघटन के बाद अमेरीका, ब्रिटेन और चीन आर्थिक ताकत बने और उनकी राजनैतिक हैसियत भी बढ़ी। उसके बाद से अमेरीकन अंग्रेजी और चीनी भाषा का फैलाव जबरदस्त तरीके से हुआ। इन देशों की भाषाएं वहां की जनभाषा के साथ.साथ ज्ञान की भाषा के रूप में भी समृद्ध हुई। इधर, आधुनिक समय में भारत विश्व के लिए बड़ा बाजार बन कर उभर रहा है। जिसका असर यह है कि हिंदी सीखने के प्रति विदेशियों का रुझान भी बढ़ा है। हालांकि इससे हिंदी केवल एक बोली के तौर पर ही समृद्ध होगी। राजनैतिक और आर्थिक हैसियत के रूप में अभी भारत विश्व के सर्वोच्च शिखर पर नहीं है।
                               किसी भी भाषा में समृद्ध शब्दकोश होना ही भाषा के विकास के लिए पर्याप्त नहीं है। जिस तेजी से अंग्रेजी का विकास हुआ है और पूरे विश्व की संपर्क भाषा बनी हुई है, उसका आशय यह बिल्कुल नहीं है कि अंग्रेजी शब्दकोश में अधिक और समृद्ध शब्द हैं। हिंदी के अलावा जर्मन, फ्रेंच आदि विदेशी भाषाओं के शब्दकोश समृद्ध हैं, लेकिन वे पूरी तरह संपर्क भाषा नहीं बन सके हैं। भाषा के विकास और विस्तार के लिए जिस देश में वह भाषा बोली जाती है,उसका बाजार बड़ा और आर्थिक व राजनैतिक हैसियत विश्व को प्रभावित करने वाली होनी चाहिए।
                                हिंदी को लेकर वर्तमान पीढ़ी की मानसिकता में बदलाव लाना होगा। आज की पढ़ी.लिखी पीढ़ी अपने घरों में क्षेत्रीय बोली या हिंदी में भले ही बात करती हो, लेकिन जब वह घर से बाहर निऽलती है तो उनकी जुबान में अंग्रेजी रहती है। देश में हिंदी के विकास में हिंदी फिल्मों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। हिंदी फिल्मों के कारण कई गैर हिंदी भाषियों ने हिंदी सीखी, लेकिन आधुनिक दौर में युवा पीढ़ी टीवी व अन्य संचार साधनों में अपने नायक-.नायिकाओं को फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता देखकर उनके अनुसार खुद को ढालने की भी कोशिश करती है। अंग्रेजी को अच्छा और हिंदी को गंवारों की भाषा समझने की मानसिकता जब तक नहीं बदलेगी, देश में हिंदी को समृद्ध करना मुष्किल होगा।

विक्रांत पाठक [ लेखक ]

Tuesday, May 15, 2012

आदिवासी एक्ट बना पत्रकारों के लिए सिरदर्द

जशपुर - यु तो आदिवासी एक्ट विशेष पिछडी जाति व जनजाती पर होने वाले अत्याचार को रोकने के लिए बनाया गया है ..पर जशपुर जिले में पुलिस का अत्याचार कहे  या पत्रकारो की नामर्दानगी इस कदर बढ़ गई है की यहाँ पत्रकारों पर सरे आम आदिवासी एक्ट के  साथ पुलिस एफ आई आर दर्ज कर गिरफ्तारी की कार्यवाही को अंजाम देने की कोशिश कर रही है ....जी हां मामला है ई  टीवी के संवाददाता  पवन तिवारी का जिसने बीते दिनों कुनकुरी में अपने मकान मालिक से लड़ाई कर ली थी जिसकी शिकायत मकान मालिक ने कुनकुरी थाने में की थी ......लगभग छ माह बीतने के बाद कोई कार्यवाही नही की गई ....क्युकी बात एक पत्रकार की थी ......पर हमारे संवाददाता जब तक पुलिस की चापलूसी करते हैं तब सब ठीक होता है पर जहा बात आती है स्वाभिमान की तो कोई भी हो रगड़ देते है .....
         ऐसा ही कुछ हुआ पवन तिवारी जी के साथ चालित थाना के कार्यक्रम में बच्चो से झाड़ू लगवाते हुए थानेदार का विजुअल बना लिए और खेलने लगे समाचार से ..बस क्या था इधर समाचार चली उधर आदिवासी और हरिजन एक्ट की धाराएं पहले की शिकायत पर लगनी शुरू हो गयी ...मारपीट व गाली गलौज को तो कैसे भी झेल जाते पर ...बात आदिवासियों के हित की है पर हमारा तो अहित हो ही रहा था ...क्युकी सहारे थानेदार ने अपराध पंजीबद्ध कर एस डी ओ पी को सौप दिया था जिसमे जांच कर एस डी ओ पी  वर्षा मेहर ने एस पी को आदिवासी एक्ट की धाराओ की पुष्टि की खबर भेज दी थी ......
          इधर आग में घी डालने का काम सहारा एम् पी सी जी के जशपुर संवाददाता राजेश पाण्डेय  के साथ साथ बाक़ी प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक मीडिया वालो ने कर दिया हुआ यु की जशपुर जिले के पत्थाल्गाओं थाने में नाबालिग बच्चो को हथकड़ियो में जकड के शारिरीक प्रताड़ना का मामला आ गया बस क्या था खबर झमाझम चलने लगी इधर एस पी साहब को मजबूरन उस थानेदार को लाईन अटैच करना पडा ...शायद एस पी साहब को नही पता था की उस पत्थाल्गाओं थाणे के टी आई नरेंद्रा शर्मा की पहुच पोलिस हेड क्वार्टर व मंत्रालय तक है ..अटैच तो कर दिया अब एस पी साहब को भी ऊपर तक जवाब देना पडा ....कही ना कही मीड़िया वालो की मर्दानगी का असर दिख रहा था पर अन्दर ही अन्दर पवन तिवारी जी के खिलाफ भी रणनीती तैयार की जा रही थी ....खैर अपराध तो दर्ज हो ही चुका है वो भी आदिवासी एक्ट के तहत ! जमानत भी नही मिलेगी ...?
       सभी पत्रकारों  को लेकर एक टीम एस पी साहब से मिलने भी गयी पर क्या मिला ....आश्वाशन का झुनझुना .....अब तो गिरफ्तारी बची है बस .....दिख जायेगी पत्रकारों की मर्दानगी ....
इतने में भी हम तो पत्रकार जो ठहरे चुप नही बैठने वाले थे सभी ने मिलकर कुछ निष्कर्ष निकाला तो पता चला की पत्रकार की गिरफ्तारी और कोर्ट  में चालान प्रस्तुत करने के लिए  आई जी के परमिसन की जरुरत होती है ....वो सब तो इन्होने नही किया था .....अब फिर से एक बार एस पी साहब के पास जाना होगा ...सबकी सलाह के बाद ही कोई निर्णय लिया जा सकेगा ....
        एक तो जशपुर पूर्णतः आदिवासी बाहुल इलाका है यहाँ काम करना थोड़ा कठीन है क्युकी छोटी जगह में यहाँ की बात वहा होते देर नही लगती उस पर किसी को कुछ कह दिया तो आदिवासी हरिजन एक्ट .....आम बात है पर क्या इसका दुरूपयोग सही है ..यहाँ के नेता और दिग्गज भी इसी के सहारे दबाव बनाते है पर हमको तो हर हाल में पत्रकारिता करनी ही है ......

Thursday, May 10, 2012

बेडियो में बचपन

बेरहम पुलिस 


पैरो में बेड़ियाँ डालकर बैठाए गए बच्चे 
 जशपुर - देश भक्ति और जन सेवा और सुधार के लिए सदैव  तत्पर रहने का दावा करने वाली पुलिस का सबसे बेरहम चेहरा सामने आया है ,बेरहमी इस कदर कि छः सात साल के बच्चों के पैरों में बेड़ियाँ लगा दी गईं और बेड़ियों में जकड़कर न उन्हें कैद रखा गया है बल्कि थाने के थानेदार के उन बच्चों कि बेरहमी से पिटाई भी कि जा रही है ..मासूमो पर बर्दी का रूतवा झाड रहे थानेदार का कहना है कि मुख्य धारा धारा में जोड़ने लिए ऐसा करना जरुरी है .मामला जशपुर जिले के पत्थल गाँव थाने का है ..........


बच्चे को गंदी गाली देकर बाल खीचते हुए थानेदार नरेंद्र शर्मा जी
                                               नीले रंग के पोशाक में इस मासूम का बेरहमी से बाल खींचने वाले इन साहब को गौर से देखिये ये साहब पत्थलगांव थाने के थानेदार हैं जिन्हें बर्दी का रितावा झाड़ने का शायद आज अच्छा मौका मिला है ,अभी तो आप बाल कि खिंचाई भर देख रहे हैं अभी तो कुछ और भी देखना बाकी है ,देखिये इन तीनो मासूमो को कैसे बेंडीयों में जकड कर रखा गया है एक बंदी और आदतन अपराधी कि तरह इन्हें इस थाने में दो दिनों से यूँ ही रखा गया है इस बात कि जानकारी जब हमें मिली अकुर हम जब इस मामले कि तश्दिक करने हाने गएर तो ये तीनो मासूम बच्चे हमें इसी अवस्था में मिले ,हमारे कैमरे में जब इन मासूमो कि तस्वीर कैद होने लगी और जब हमारे कैमरे कि हरकतों पर थाने के पोलिउस वाले कि नजर पड़ी तो उसने इन बच्चों के पैरों में लगी बेंडीयान  शुरू कर दी ,आप देख   सकते हैं पूरी तस्वीर ,साफ साफ देखा जा सकता है कि पुलिस का ये आदमी किस तरह इनके पैरों से बेंडी यान खोल रहा है ,बच्चों से पुलिस का खफ हटाने के लिए एक और सरकार बाल मित्र जैसी योजनायें चलाती हैं तो दूसरी और मासूमो पर इस कदर पुलिस का कहर टूटना पुलिस के तमाम दावों और कोसिसों कि कलाई खोलती है ,बहरहाल इस पुरे मामले में जब हमने पत्थलगांव थाने के थानेदार नरेन्द्र शर्मा से बात कि तो उनका कहना था कि ये बच्चे चोर प्रवृति के हैं ,चोरी करना ही इनका काम है और इन्हें मुख्य धारा में वापस लाने के लिए कड़ाई जरूरी है ......
मीडिया की दखल के बाद बेडियो से मुक्त बच्चे 
                                                          
उन्हें थाना क्यों लाया गया ,इनका दोष क्या था ये जानने लिए जब हमने इन बच्चों से बात कि तो बच्चों ने हांलाकि ये कबूल किया कि वे पहले चोरी का काम करते थे लेकिन आज उन्हें बेकसूर यहाँ लाया गया है ,उन्होंने हमें ये भी बताया की वे लावारिस हैं किसी के पिता नहीं है ओ किसी के पिता ने दूसरी शादी करके घर बसा लिया तो कोई खाना खाने के लिए चोरी किया करते हैं ....
                    
बेडियो में बचपन 
                                                         हों सकता है की इन मासूमो के अक्न्दर अपराध का बीज पनप रहा हों और ये अपराध की दुनिया में कदम भी रक्ल्ह चुके हों लेकिन आखी इन्हें मुख्य धारा से जोड़ने की जिम्मेदारी किसकी है और क्या इन्हें सुधारने का सबसे आखिरी तरिका यही है जिस तरीके को पत्थल गाँव पोलिस अपना रही है ,सवाल तो ऐसे ऐसे कई हैं जिसका जवाब पोलिस को देना होगा ..................................



Wednesday, March 21, 2012

विवादों के घेरे में नगर पंचायत बगीचा



  • विवादों के घेरे में नगर सौदर्यीकरण अभियान
  • नगर पंचायत की औपचारिक सहमती के बिना हो रहे हैं कार्य
  • व्यवस्थापन से वंचित प्रभावितों में नाराजगी


बगीचा - अतिक्रमण विरोधी मुहिम के दौरान तमाम विवादों में घिरने के बाद बगीचा प्रषासन इन दिनों नगर सौंदर्यीकरण के कार्य को लेकर एक बार पुनः विवादों में घिरता नजर आ रहा है। अतिक्रमण से मुक्त कराए गए शासकीय जमीनों पर कराए जा रहे सौंदर्यीकरण के इन कार्यो में उठ रहीं विवादों का प्रमुख करण इन कार्यो के लिए नगर पंचायत की सहमति सहित अन्य औपचारिकताओं की प्रषासन द्वारा अनदेखी किया जाना है।
विगत दो-तीन माह के दौरान अतिक्रमण विरोधी मुहिम चला कर स्थानीय प्रषासन ने नगर के नजलू और घास जमीन को मुक्त कराया था। मुक्त कराए गए जमीन को पुनः अतिक्रमण से बचाने के लिए बगीचा के प्रषासनिक अधिकारियों ने सौंदर्यीकरण का कार्य प्रारंभ किया है। इस कार्य के तहत नगर के प्रमुख चौक-चौराहों सहित शासकीय कार्यालयों के सामने स्थानीय संस्कृति को दर्षाती विभिन्न मूर्तियां,गॉर्डन और फौव्वारा लगाने का कार्य इन दिनों जोरो पर है। नगर सौंदर्यीकरण के लिए प्रारंभ किए गए इन कार्यो के लिए अधिकारियों ने शासकीय औपचारिकताओं को भी पूरा करना उचित नहीं समझा।
अंजान नगर पंचायत -
नगर में जोर शोर से चल रहे नगर सौंदर्यीकरण कार्य से नगर पंचायत पूरी तरह से अंजान है। इस संबंध में नगर पंचायत अध्यक्ष प्रभात सिडाम से चर्चा करने पर उन्होनें बताया कि नगर सौंदर्यीकरण से संबंधित किसी कार्य का प्रस्ताव नगर पंचायत द्वारा पारित नहीं किया गया है और ना ही औपचारिक स्वीकृति प्रदान की गई है। उक्त कार्य पूरी तरह से स्थानीय प्रषासन द्वारा कराया है। इन कार्यो के लिए राषि कहां से आ रही है,यह संबंधित अधिकारी ही बता सकते हैं। इन निर्माण कार्यो के लिए व्यय की गई राषि स्वयं मे ंएक जांच का विषय हो सकती है।
नगरवासियों ने खोला मोर्चा -
अतिक्रमण विरोधी मुहिम के दौरान कलेक्टर अंकीत आनंद ने जिलेवासियों और जनप्रतिनीधियों को प्रषासनिक कार्यवाही से किसी को भी बेरोजगार ना होने देने का आष्वासन दिया था। जिले के मुखिया का यह आष्वासन भी बगीचा में लागू होती नहीं दिखाई दे रही है। अतिक्रमण विरोधी मुहिम के दौरान प्रषासन ने बस स्टेण्ड सहित नगर के अन्य स्थानों से लगभ सौ ठेले,गुमटियां,होटल आदि को हटाया था। इस दौरान अधिकारियों ने प्रभावितों को व्यवस्थापन का अष्वासन दिया था। लेकिन कलेक्टर के आष्वासन और शासन की नीति के उल्ट स्थानीय प्रषासन ने प्रभावितों को दुकान मुहैया कराने के बजाय सौंदर्यीकरण कराना ज्यादा उचित समझा। प्रषासन की इस अदूरदर्षीपूर्ण कार्यवाही से प्रभावितों में खासी नाराजगी देखी जा रही है। प्रभावितों ने प्रषासन के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए वायदे के मुताबिक प्रषासन द्वारा  व्यावस्थापन ना किए जाने पर आमरण अनषन सहित उग्र आंदोलन की चेतवानी दी है।
प्रषासन की प्राथमिकता सवालों के घेरे में -
पेय जल और स्ट्रीट लाईट जैसी बुनियादी सुविधा से महरूम बगीचा में प्रषासन द्वारा नगर के सौंदर्याीकरण में पूरी ताकत झोंक दिए जाने से,अधिकारियों की प्राथमिकताओं को लेकर सवाल उठने लगे हैं। गर्मी के दस्तक के साथ ही नगर के जल स्त्रोत दम तोड़ने लगे हैं। पेय जल और निस्तारी जल के लिए हाहाकार मचने लगा है। नगर की गलियां अभी भी अंधेरे में डूबी पड़ी है। इन अति आवष्यक कार्यो की उपेक्षा कर नगर सौंदर्यीकरण को प्राथमिकता दिए जाने से स्थानीय प्रषासन के कार्यो पर विवादों का साया मंडराने लगा है।
नगर पंचायत पर बढ़ेगा आर्थिक बोझ -
सौदर्यीकरण के नाम पर नगर में अनावष्यक रूप से स्ट्रीट लाईट और फौव्वारें अधिकारियों द्वारा लगवाया गया है। इन स्ट्रीट लाईट और फौव्वारों को भारी भरकम बिजली बिल आर्थिक तंगी की मार झेल रहे नगर पंचायत पर भारी पड़ने वाला है। जानकारी के मुताबिक हाल ही में नगर पंचायत ने किसी तरह लगभग 4 लाख रूप्ये विद्युत विभाग को अदा कर नगर को अंधेरे में डूबने से बचाया है। ऐसे में आने वाले दिनों में यह कथित नगर सौंदर्यीकरण नगरवासियों को कितना भारी पड़ने वाला है,इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है।

नहीं बना शॉपिंग कॉम्प्लेक्स -
जनपद पंचायत कार्यालय के सामने अतिक्रमण से मुक्त कराई गई जमीन पर नगर पंचायत ने शॉपिंग काम्प्लेक्स निर्माण कराने का प्रस्ताव लगभग छः माह पूर्व पारित किया था। लेकिन सौंदर्याीकरण की जल्दबाजी में प्रषासन ने नगर पंचायत के प्रस्ताव को दरकिनार करते हुए सौंदर्यीकरण का कार्य करा दिया है। प्रषासन के इस कदम से एक ओर नगर के बेरोजगार परेषान हैं,वहीं नगर पंचायत के अस्तित्व और उसके औचित्य पर भी प्रष्न चिन्ह लग रहा है।

Thursday, March 1, 2012

खतरनाक खिलौना

आपने कई वफादार देखे होंगे जो इन्सान से दोस्ती भी करते है और जरूरत पड़ने पर उन्हें सुरक्षित भी रखते हैं। यहां हम आपको दिखाने जा रहे हैं सांप से एक परिवार की दोस्ती। जी हां यह सांप इस परिवार का दोस्त भी है और समय पड़ने पर उनकी रक्षा भी करता है। लोग भले ही उससे डरते हों पर उस परिवार के लोग उसके साथ खाने पीने से लेकर खेलने व पढ़ने का काम भी करते हैं। जशपुर जिले में आज भी लोग प्राचीन मान्यता के अनुसार जानवरों को पालते है और उनसे एक घर के सदस्य की तरह व्यवहार करते हैं,उनसे दोस्ती भी करते हैं। जिससे जरूरत पड़ने पर वह उस परिवार की रक्षा व सहायता भी करता है। यहां कई ऐसे जाति हैं जो सांपों को पालते है और अपने घर में रखते हैं। इनकी मान्यता होती है कि सांप उनकी रक्षा करता है और सहायता भी। इसलिए वे सांप को पालते हैं। छ.ग. और उड़ीसा सीमा पर बसे घुमरा गांव में जहां असवर राम अपने परिवार के साथ पूर्वजों के समय से ही सांप को पालकर अपने घर का सदस्य बनाया हुआ है। यह सांप इनके घर के अन्य सदस्यों के साथ ही रहता है जो साथ में खाना भी खाता है,बच्चों के साथ खेलता और पढ़ता भी है। इसके बावजूद यह सांप इनको कोई नुकसान नहीं पंहुचाता है बल्कि जरूरत पड़ने पर इनकी रक्षा भी करता है। वैसे तो यह इलाका नागलोक से के नाम से जाना जाता है जहां लोग सर्पविद्या में भी माहिर होते है जिसके सहारे सांपों को पकड़ना,विष उतारना,जैसे काम इनके बांए हाथ का खेल होता है परंतु यह परिवार पुराने समय से ही सांप का शौकीन है और इनको भी सर्पविद्या में महारत हासिल है। जब भी किसी सांप को ये पकड़ते हैं तो उसकी विष ग्रंथी को निकाल देते हैं जिससे सांप दूध व अन्य खाद्यान्न ग्रहण करने लगता हैं। इसके जानकार बताते हैं कि सर्प के विषग्रंथी का सीधा संबंध उसकी आयु से होता है जिसे निकाल लेने के बाद सांप की आयु कम हो जाती है।

Thursday, January 26, 2012

देश तेरे लिए




इतिहास के पन्ने उलटते वक्त,
    कभी- कभी सोचता हूँ कि कैसे-कैसे,
          उन लूटेरों ने, अँग्रेजों ने
              लूटा होगा , छलनी किया होगा
                  हमारे देश की जनता को,
                     हमारी संस्कृति को , सभ्यता को ,
                       हमारी धरोहर को ।
                         मन में अजीब से चित्र घुमने लगते हैं ।
                               मन-ही-मन उन्हें गालियाँ देता हूँ
                                   और फिर सो जाता हूँ,
                                     चैन की नींद ,
                                      कि चलो अब तो हम आजाद हैं ।
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                                            और अगली ही सुबह,
                                        अखबार में देखता हूँ -
                                     आतंक के साये में डर-डर के जीते लोग,
                                   भ्रष्ट नेताओं की चाल में बलि चढती भोली-भाली जनता,
                              आधे पेट खाकर जीवन-यापन करता परिवार,
                           अपनी ही हालत पे रोते सरकारी दफ़्तर, 
                        अस्पताल और ना जाने कितने समस्याओं से जूझता अपना राष्ट्र ।
                    मन में फिर सवाल उठता है ,
                क्या हम सचमुच आजाद हैं ?
            फिर मुँह से भद्दी गालियाँ निकलती हैं ,
        उन भ्रष्ट नेताओं के लिये , आतंकवादियों के लिये ।
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पर क्यों , किसलिए ?
मैं क्यों उनसे इतनी घृणा करता हूँ ?
उनने जो कुछ भी किया ,
अपने स्वार्थवश अथवा अज्ञानवश |
पर मैनें क्या किया
अपने देश के लिए ?
कहीं मैं भी तो जिम्मेवार नहीं ,
इन सब के लिए ?
फिर से वही प्रश्न
और मैं उलझ पड़ता हूँ, अपने-आप से ।
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मुझे कोई अधिकार नहीं ,
किसी से घृणा करने का।
मुझे घृणा है ,
तो अपने आप से , अपनी मूकदर्शिता से , 
अपनी अकर्मण्यता से
अपनी उस खुद की बनाई हुई मजबूरी से ,
जो मुझे कुछ करने नहीं देता,
अपने स्व से उठकर ।
उस मोह से , उस बंधन से ,
जो मुझे सीमित करता है ,
अपने-आप तक , अपने परिवार तक ।
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लेकिन फिर, अगर ये ही मेरा पूरा सच है ,
तो मन में इतनी उथल-पुथल क्यों ?
इतनी घुटन क्यों?ये उबाल क्यों ?
संभवतः ये संकेत हैं ,
कि मेरा भावनाएँ अभी मरी नहीं ,
सुसुप्त भले ही हैं ।
मानो जागने के लिए इंतजार हो,
किसी क्षण-विशेष का ।
जब ये सीमाएँ टूटेंगी ,
जब कोई मोह नहीं , 
कोई बंधन नहीं बस एक जूनून ,
कि मिटा दूँगा हर उस छोटी - बड़ी शक्ति को,
जो छीनती है हमसे  हमारी आजादी , हमारा चैन ।
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इसलिए ,
हे देश के भ्रष्ट-स्वार्थी नेताओं ,
हमारी अमन-शांति छीनने वाले आतंकवादियों ,
और हमारी तरक्की से जलने वाले राष्ट्रों
चेतो ।
हमारे भीतर की उबाल को
कम मत आँको ।
क्योंकि इनमें इतनी ऊर्जा है ,
कि ये सुनामी बनकर ,
महलों को भी मिट्टी में परिणत कर  सकती है ।