!! समर्थन के स्वरों में एक विरोध मेरा भी !!

भारत की राजनीति को इस समय ‘जान-बूझ’ कर मोदीमय सा बनाया जा रहा है। नरेन्द्र मोदी के जिक्र के बिना शायद ही कोई दिन बीतता हो। इसे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नजरें जमाए नरेन्द्र मोदी की कुशल रणनीति भी कह सकते हैं। ‘जान-बूझ’ शब्द का प्रयोग मैंने इसलिए किया क्यूंकि २७ साल तक पश्चिमी बंगाल पर शासन करने वाले ज्योति बासु जी तक भारत में कभी प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के लिए इस तरह प्रचारित नही किये गए जिस तरह मात्र तीन जीत पर नरेन्द्र मोदी जी का नाम उछाला जा रहा है। हालाँकि ये वातारवरण मोदीमय तब है जब की खुद भारतीय जनता पार्टी में “मैं प्रधानमंत्री” “मैं प्रधानमंत्री” का जाप करने वाले कम से कम ५ अन्य नेता हैं। यहाँ पर ध्यान देने योग्य एक बात और है कि जिन्हें (जनता) सांसद चुनना है वो प्रधानमंत्री चुनने में कयासबाजी कर रही है और जिन्हें (सांसद) प्रधानमंत्री चुनना है वो आपस में सर फुट्टवल कर रहे हैं। लेकिन बात यहाँ सिर्फ राजनीति को ही मोदीमय बनाने तक ही सीमित नहीं है बल्कि सोशल साइट्स पर भी नरेन्द्र मोदी की धूम दिखाई पड़ रही है, पूरा वातावरण ऐसा बनाया जा रहा है कि जैसे श्री नरेन्द्र मोदी जी के भारत के प्रधानमंत्री की कुर्सी सम्हालते ही सारी दिक्कते तुरंत ही दूर हो जाएँगी। जैसे अगर आपकी बीवी से आपकी ना बन रही हो या आपके इन्टरनेट की स्पीड कम आ रही हो, आपको अपनी गाड़ी के लोन न मिल रहा हो या आपकी माता जी के घुटनों में समस्या रहती हो..आदि-आदि।

हालाँकि ये बात अलग है कि दिन-ब-दिन राय बदलती रहती है नरेन्द्र भाई की अनेकानेक मुद्दों पर, तभी तो अपनी पत्नी यशोदा बेन पर हमेशा चुप रहने वाले और शशि थरूर की पत्नी की तुलना ५० करोड़ की गर्ल फ्रैंड से करने वाले मोदी जी हाल में ही ले मेरेडियन होटल में फिक्की की महिला शाखा के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए देश में महिलाओं की भूमिका पर लम्बा-चौड़ा भाषण दे आये। यहाँ पर यह बात भी गौरतलब है की जसू बेन का तो उन्होंने गुणगान कर दिया लेकिन यशोदा बेन के बारे में आज तक कुछ भी नहीं बोला।
असहिष्णुता भारतीय राजनीति और आम जनता के लिये कोई नया विशेषण नहीं है। अमूमन दक्षिण एशिया के लोग भावुक होते ही हैं और जिस विचारधारा या नेता का समर्थन करते हैं उसके खिलाफ बात सुन नहीं सकते। विरोधियों की अच्छी बातों का सम्मान करना भी उनके स्वभाव में शामिल नहीं होता। शायद इसी वजह से मोदी की आलोचनाओं को भी उनके समर्थक केवल एक आलोचना के तौर पर ना लेकर व्यक्तिगत तौर पर आलोचक को ही घेरने का काम करने लगते हैं और ठीक यहीं पर मुद्दा गौड़ होता जाता है और व्यक्ति प्रधान।


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