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कर्णाटक राज्य के छोटे से गाँव उडुपी में एक नैष्ठिक ब्राह्मण निर्मल के घर एकमात्र संतान कन्या हुई. सभी उस ब्राह्मण निर्मल पर दबाव डालने लगे कि दूसरा विवाह कर लें, उससे पुत्र प्राप्त हो जाये, वंश चले. ब्राह्मण श्री निर्मल ने दृढ़ता के साथ इसे अस्वीकार कर दिया. जन्मी कन्या का नाम था-अक्का महादेवी. उन दिनों कन्याओं को शास्त्रज्ञान के अयोग्य माना जाने लगा था. श्री निर्मल ने अक्का महादेवी को सभी शास्त्रों का अध्ययन कराया, ज्ञान दिया एवं आध्यात्मिक दिशा दी. रुढ़िवादी लोग ब्राह्मण निर्मल का उपहास करते, कहते-" क्या लड़की से वंश चलेगा ?" शिक्षा और वातावरण के प्रभाव से अक्का महादेवी का व्यक्तित्व विकसित होता गया. वे एक महान तपस्विनी, आदर्शवादी विदुषी के रूप में प्रसिद्द हुई और पिता का नाम रोशन कर दिया. आज भी लोग ब्राह्मण निर्मल का नाम अमर अक्का महादेवी के पिता के रूप में जानते हैं...
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