Monday, June 20, 2011

!! यह हम पर निर्भर है कि सामने उपस्थित स्थिति को कैसे सँभालते हैं !!


एक बार जब स्वामी विवेकानंद जी के अमेरिका प्रवास के दौरान एक महिला ने उनसे शादी करने की इच्छा जताई. जब स्वामी विवेकानंद ने उस महिला से पूछा कि आप ने ऐसा प्रश्न क्यूँ किया? उस महिला का उत्तर था कि वह  स्वामी जी की बुद्धि से बहुत मोहित है. और उसे एक ऐसे ही बुद्धिमान बच्चे की कामना है. इसीलिए उसने स्वामी से यह प्रश्न किया कि क्या वे उससे शादी कर सकते है और उसे अपने जैसा एक बच्चा दे सकते हैं? उन्होंने महिला से कहा कि चूँकि वे सिर्फ उनकी बुद्धि पर मोहित हैं इसलिए कोई समस्या नहीं है. उन्होंने कहा- “प्रिय महिला, मैं आपकी इच्छा को समझता हूँ. शादी करना और इस दुनियाँ में एक बच्चा लाना और फिर जानना कि वह बुद्धिमान है कि नहीं, इसमें बहुत समय लगेगा. इसके अलावा ऐसा ह़ी हो इसकी गारंटी भी नहीं है. इसके बजाय, आपकी इच्छा को तुरंत पूरा करने हेतु मैं आपको एक प्रामाणिक सुझाव दे सकता हूँ. आप मुझे अपने बच्चे के रूप में स्वीकार कर लें . इस प्रकार आप मेरी माँ बन जाएँगी. और मेरे जैसे बुद्धिमान बच्चा पाने की आपकी इच्छा भी पूर्ण हो जाएगी.“ यह सुनकर वह महिला अवाक् रह गयी… ठीक ऐसा ह़ी एक पौराणिक प्रसंग है जब अर्जुन के रूप पर मोहित होकर स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी ने विवाह का प्रस्ताव रखा था. अर्जुन ने भी उर्वशी से यही कहा था . हम कई बार ऐसे अप्रत्याशित प्रश्न का सामना कर सकते हैं, यह हम पर निर्भर करता है कि हम इस सामने उपस्थित स्थिति को कैसे सँभालते हैं और हमारा जवाब कितना सरल होता है...

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