Thursday, April 25, 2013

“मैं प्रधानमंत्री”

!! समर्थन के  स्वरों में एक विरोध मेरा भी !!

भारत की राजनीति को इस समय ‘जान-बूझ’ कर मोदीमय सा बनाया जा रहा है। नरेन्द्र मोदी के जिक्र के बिना शायद ही कोई दिन बीतता हो। इसे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नजरें जमाए नरेन्द्र मोदी की कुशल रणनीति भी कह सकते हैं। ‘जान-बूझ’ शब्द का प्रयोग मैंने इसलिए किया क्यूंकि २७ साल तक पश्चिमी बंगाल पर शासन करने वाले ज्योति बासु जी तक भारत में कभी प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के लिए इस तरह प्रचारित नही किये गए जिस तरह मात्र तीन जीत पर नरेन्द्र मोदी जी का नाम उछाला जा रहा है। हालाँकि ये वातारवरण मोदीमय तब है जब की खुद भारतीय जनता पार्टी में “मैं प्रधानमंत्री” “मैं प्रधानमंत्री” का जाप करने वाले कम से कम ५ अन्य नेता हैं। यहाँ पर ध्यान देने योग्य एक बात और है कि जिन्हें (जनता) सांसद चुनना है वो प्रधानमंत्री चुनने में कयासबाजी कर रही है और जिन्हें (सांसद) प्रधानमंत्री चुनना है वो आपस में सर फुट्टवल कर रहे हैं। लेकिन बात यहाँ सिर्फ राजनीति को ही मोदीमय बनाने तक ही सीमित नहीं है बल्कि सोशल साइट्स पर भी नरेन्द्र मोदी की धूम दिखाई पड़ रही है, पूरा वातावरण ऐसा बनाया जा रहा है कि जैसे श्री नरेन्द्र मोदी जी के भारत के प्रधानमंत्री की कुर्सी सम्हालते ही सारी दिक्कते तुरंत ही दूर हो जाएँगी। जैसे अगर आपकी बीवी से आपकी ना बन रही हो या आपके इन्टरनेट की स्पीड कम आ रही हो, आपको अपनी गाड़ी के लोन न मिल रहा हो या आपकी माता जी के घुटनों में समस्या रहती हो..आदि-आदि।


हालाँकि ये बात अलग है कि दिन-ब-दिन राय बदलती रहती है नरेन्द्र भाई की अनेकानेक मुद्दों पर, तभी तो अपनी पत्नी यशोदा बेन पर हमेशा चुप रहने वाले और शशि थरूर की पत्नी की तुलना ५० करोड़ की गर्ल फ्रैंड से करने वाले मोदी जी हाल में ही ले मेरेडियन होटल में फिक्की की महिला शाखा के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए देश में महिलाओं की भूमिका पर लम्बा-चौड़ा भाषण दे आये। यहाँ पर यह बात भी गौरतलब है की जसू बेन का तो उन्होंने गुणगान कर दिया लेकिन यशोदा बेन के बारे में आज तक कुछ भी नहीं बोला।
असहिष्णुता भारतीय राजनीति और आम जनता के लिये कोई नया विशेषण नहीं है। अमूमन दक्षिण एशिया के लोग भावुक होते ही हैं और जिस विचारधारा या नेता का समर्थन करते हैं उसके खिलाफ बात सुन नहीं सकते। विरोधियों की अच्छी बातों का सम्मान करना भी उनके स्वभाव में शामिल नहीं होता। शायद इसी वजह से मोदी की आलोचनाओं को भी उनके समर्थक केवल एक आलोचना के तौर पर ना लेकर व्यक्तिगत तौर पर आलोचक को ही घेरने का काम करने लगते हैं और ठीक यहीं पर मुद्दा गौड़ होता जाता है और व्यक्ति प्रधान। 
कुछ ऐसा ही अरविन्द केजरीवाल के साथ भी हो रहा है। आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं नें उन्हें वो जगह दे दी है जिनके आगे हर मुद्दें छोटे दिखने लगे और सिर्फ अरविन्द केजरीवाल का नाम ही काफी हो, शायद इसीलिए अब तक अरविन्द केजरीवाल की तमाम मुद्दों पर वास्तविक सोच क्या है, इसका पता तक नहीं चल सका है। लेकिन ये न्यायोचित वातावरण नहीं है। विचारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सबको होनी चाहिए लेकिन मोदी और केजरीवाल समर्थकों के साथ स्थिति दूसरी है। वे ना केवल खुद उनका समर्थन करेंगे बल्कि आपको भी लगातार समर्थन करने के लिए मजबूर करेंगे।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आज के समय में सोशल मीडिया एक बड़ी ताकत बन कर उभरा है और उस सोशल मीडिया पर बीजेपी को चाहने वाला एक बड़ा वर्ग मौजूद है। लेकिन यहाँ पर ये बात भी दिलचस्प है की बीजेपी को मिलने वाले समर्थन में भी यहाँ पर दो भाग है। एक नरेन्द्र मोदी के समर्थक हैं और दूसरे, हिंदुत्व की कट्टरवादी विचारधारा के अनुयायी संघ को आदर्श मानने वाले समर्थक। दोनों ही समर्थक भावनाओं की अतिरेकिता में विश्वास करते है बिना इस तथ्य को देखते हुए की वर्तमान परिस्थितियों में भाजपा भी एक राजनैतिक दल के रूप में कांग्रेस की ही तरह डिस्क्रेडिट हो चुकी है। और यही समय की पुकार भी है की हम उन्ही लोगों को देश का सञ्चालन करने के लिए आगे करें जो अगर भ्रष्टाचार के विरुद्ध बोले तो अपने राज्य में भी प्रभावी लोकायुक्त की नियुक्ति करे। हमें ऐसे ही लोगों को आगे करना चाहिए जो अगर दूसरों को संयम सिखाएं तो अपना भी किसी टीवी इंटरव्यू में सवालों को छोड़कर उठ कर ना खड़े हो बल्कि संयम के साथ उसका सामना करे। हमें ऐसा व्यक्ति चाहिए जो दूसरों की कमियों को गिनाते हुए ऐसे तर्कों से परहेज करे कि ‘ये सब तो संविधान द्वारा दी गयी चीज़ें हैं ,केंद्र में जो भी सरकार होगी जनहित में एक्ट लागू करना उसकी जिम्मेदारी है’ क्यूंकि ठीक यही तर्क तो फिर उनके अपने राज्य पर भी लागू होगा और फिर उनका ‘मैंने किया’ वाला क्रेडिट तो खत्म हो जायेगा। हमें ऐसे व्यक्ति को आगे करना चाहिए जो अगर सबको साथ लेकर चलने को बोले तो फिर उसके किसी कॉलेज के प्रोग्राम में मुस्लिम छात्रों को क्यूँ प्रवेश नहीं मिलता? कुलदीप नैयर के एक बयान को याद करूँ तो ‘मोदी ने गुजरात को झांसा दिया है। उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की है कि गुजरात के लोग भारत के बाकी लोगों से अलग हैं। अगर पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने ऐसा किया होता तो सारा देश उनके खिलाफ यह कहते हुए खड़ा हो जाता कि वह सिख आतंकवाद को उकसा रहे हैं।’ क्या गलत है इस बयान में? क्या मोदी जी की भाषा अलगाववाद जैसी महक नहीं देती है? एक देश के अन्दर ही दो देश बनाने कि मंशा नहीं दिखती है? मेरे गुजरात नें भारत को ये दिया , मेरे गुजरात नें ये किया जैसे बयान ना केवल बीजेपी के राष्ट्रवाद से अलग है वरन देश की एकता के लिए भी खतरा जैसे हैं। मैं किसी भी अन्य दल का समर्थन नहीं कर रहा हूँ ना ही मुझे बीजेपी से कोई दिक्कत है लेकिन हाँ, एक नेत्रत्व्कर्ता के तौर पर मुझे नरेन्द्र भाई मोदी से जरूर डर लगता है। मुझे उनकी पगड़ी से डर लगता है क्यूंकि उसके ऊपर अगर जालीदार टोपी रख भी दें तो भी वो गिर जाएगी। मुझे उनके असंयम से डर लगता है क्यूंकि मैंने कई बार उन्हें कुछ सवालों पर उखड़ते हुए देखा है। मुझे उनके ‘मैं’ से डर लगता है क्यूंकि बाकी तो ‘हम’ हैं और मुझे उनके विजन से भी डर लगता है क्यूंकि ये विजन किसी सृजन की बुनियाद पर नहीं शुरू हुआ था।